हिन्दी साहित्य
भाषा का निर्माण कैसे होता है ?
भाषा बनती कैसे है...???
भाषा क़रीब- क़रीब वैसे ही बनती है जैसे अमावट बनता है। संचित और विस्तीर्ण रस की एक परत धूप- हवा ने सुखाई नहीं कि दूसरी परत बिछ गयी। और इस तरह परत-दर- परत मिठास, थोड़ी मिट्टी, बहुत सारी मानुष गंध, आदम ज़ात का सरस समवेश स्पर्श एक थक्के के रूप में सामने हाज़िर! ऐसे ही बनती है...
भाषा परत दर परत जातीय स्मृतियाँ, गंभीर सांस्कृतिक सन्दर्भ, हर युग, हर वैयक्तिक सामाजिक अवगुंठन की एक ताज़ा परत...
मीठी, किरकिरी, हल्की सी खट्टी, शुद्ध भी, अशुद्ध भी, अर्थ के कई लच्छों से भरी हुई...!!!
(कहीं पढ़ा था, अब आप भी पढ़िये फ़ील लेके पढ़ेंगे तो मज़ा आने की पूरी गारंटी।)
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