कविता
सुबह का पर्दा क्या उठा
कि
हर शख़्स,
खूँटी पर टँगी
मुस्कुराहट
ओढ़कर...
अपने किरदार में
ढलता हुआ
भीड़ के..
शब्दों के
शोर में खो गया..
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
सुबह का पर्दा क्या उठा
कि
हर शख़्स,
खूँटी पर टँगी
मुस्कुराहट
ओढ़कर...
अपने किरदार में
ढलता हुआ
भीड़ के..
शब्दों के
शोर में खो गया..