न्यायिक स्वतंत्रता
अमरीकी पूंजीवादी व्यवस्था में बढते अंतर्विरोधों, टकराव व संकट का नतीजा है कि अचानक से उसके सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष बडी रिश्वतखोरी के इल्जाम, जिन कॉर्पोरेट के मुकदमे वे सुन रहे थे, उनसे लिए फायदों की सूचनाएं, सबूतों सहित जाहिर होने लगे हैं। क्लिंटन ओबामा बाइडेन खेमे व ट्रंप के हुडदंगी गिरोह के बीच परस्पर इल्जाम, रूस के दखल की बातें, ट्रंप पर मुकदमे के बाद ये एक नया टकराव है। ऐसा नहीं कि यह भ्रष्टाचार नया है, या पहले किसी को इसकी खबर नहीं थी। बस दुनिया भर की लूट से पैदा चकाचौंध के बीच शासक वर्ग के विभिन्न पक्ष फर्जी गर्म बहसों के बीच भी एक दूसरे को बचाते थे ताकि पूरी व्यवस्था बची रहे। सत्तर के दशक के संकट ने कुछ हद तक ऐसी स्थिति पैदा की थी जब निक्सन इसका शिकार बना। पर बाद में सोवियत खेमे के संकट व पतन, फिर चीन के उनके खेमे में जाने से संकट कुछ दशक टल गया था। पर वे 'समाधान' अस्थाई थे, संकट की बुनियाद ज्यों की त्यों बनी रही।
पिछले संकट से निकालने वाले वही चीन-रूस अब प्रतिद्वंद्वी खेमा बन कर चुनौती दे रहे हैं, घरेलू संकट के निर्यात की संभावनाएं अत्यंत न्यून होती जा रही हैं और संकट लगभग चिरस्थाई बन कर सामने आया है। खुद शासक वर्ग के लिए पहले की तरह से सब कुछ सामान्य दिखा पाना अब मुमकिन नहीं रह गया है।
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?