भारत मे मजदूरों की हालत एक रिपोर्ट

कामगारों की हालत बँधुआ मज़दूर की होती जा रही है...
रिज़र्व बैंक ने अपने हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स ऑन इंडियन स्टेटस् में लेबर ब्यूरो के 2014-15 से 2021-22 तक के आंकड़ों के सहारे सालाना मज़दूरी के अनुमान पेश किये हैं. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के सहारे मज़दूरों की नकद मज़दूरी को वास्तविक मज़दूरी में बदला जा सकता है और पता किया जा सकता है कि इस अवधि में वास्तविक मज़दूरी में कितनी बढ़ोतरी हुई.
साल 2014-15 से 2021-22 के बीच वास्तविक मज़दूरी की वृद्धि-दर समग्र रूप से सालाना एक प्रतिशत से भी कम रही है- खेतिहर मज़दूरी के लिए 0.9 प्रतिशत, निर्माण मज़दूरी के लिए 0.2 प्रतिशत तथा ग़ैर खेतिहर मज़दूरी के लिए 0.3 प्रतिशत.
बीते आठ सालों में अखिल भारतीय स्तर पर वास्तविक मज़दूरी में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है. खेतिहर मज़दूरों के लिए वास्तविक मज़दूरी की सालाना वृद्धि दर सिर्फ दो बड़े राज्यों में दो प्रतिशत से कुछ अधिक रही- कर्नाटक (2.4 प्रतिशत) तथा आंध्र प्रदेश (2.7 प्रतिशत). पांच बड़े राज्यों (हरियाणा, केरल, पंजाब, राजस्थान तथा तमिलनाडु) में वास्तविक मज़दूरी 2014-15 से 2021-22 के बीच घटी है.
(आज प्रभात खबर में छपे अर्थशास्त्री ज़्याँ द्रेज़ के एक लेख से)
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