साहित्य

मार्च 27, 2023 - 01:13
 0  25
साहित्य

कुछ समय से मैं ये समझने का प्रयत्न कर रहा हूं कि आखिर इतना 'साहित्य' लिखा क्यों जा रहा है?

और किसके लिए लिखा जा रहा है? कौन पढ़ रहा है? कितनी क्रांतियां हुई? कितने सभ्य बने?

कितने लोगों के जीवन में आमूल परिवर्तन हुआ?

 बुक स्टोर भरे पड़े हैं। पुस्तक मेलों में प्रकाशनों की भरमार है। किंतु पाठक कहां है? सहृदय कहां है?

 क्रय करने वाले भी तो कहीं न कहीं 'लेखक' ही हैं। एक कवि, अपने मित्र दूसरे कवि का संग्रह खरीद रहा है। एक उपन्यासकार अपने परिचित दूसरे उपन्यासकार का उपन्यास खरीद रहा है।

 'प्रेम कविताएं' उन युवाओं के बीच शराब की तरह धडल्ले से बिक रही है, जो 'इश्क के मारे' है या आसन्न ब्रेक अप है। पुस्तक की प्रासंगिकता पर दुनिया भर के साहित्यिकों के उद्धरण देकर कहा जा रहा है कि 'बच्चों को पुस्तकों के निकट लाओ। घर में पुस्तकें नहीं वह गरीब है' आदि।

 किंतु व्यवहार में प्रत्येक लेखक अपनी संतति को टेक्नोलॉजी के जरिए धन कमाना सिखा रहा है।

आपकी प्रतिक्रिया क्या है?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow