कविता
नहीं जानता
लिप्त हूँ
या निर्लिप्त
पर हूँ हर पंछी में
उसके रंग
और उसकी उड़ान में
हर फूल में
उसकी ताज़गी
और खिलने में तितलियों के नृत्य में
नदियों के गीत में
पहाड़ों के मौन में रुदन
और उत्सव में
मैं हर क्षण देह ओढ़ता हूँ
मैं हर क्षण देह छोड़ता हूँ...
गोधूलि...
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