बात प्राचीन भारत के संगीत की

अप्रैल 25, 2023 - 21:37
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बात प्राचीन भारत के संगीत की

गाड़ियों में हॉर्न की जगह तबले, ढोलक, बाँसूरी आदि का संगीत बजाने के लिए दो साल पहले भारत सरकार ने क़ानून बनाने की घोषणा की थी. पता नहीं, आज वह मामला कहाँ है. तब मैंने मंत्री जी से पूछा था कि कहीं ख़ुद ही तो नहीं बजाना पड़ेगा. बहरहाल, उस मामले को याद करते हुए एक कहानी याद आ गयी, हालाँकि उसका संदर्भ बिल्कुल अलग है, पर वह भी भारतीय संगीत कला से संबद्ध है. वैसे यह कहानी तब भी याद आती है, जब किसी बड़े ओहदेदार द्वारा अपने सगे-संबंधियों को पद बाँटने की ख़बर देखता हूँ, कथा कुछ यूँ है-

 c. 1712.

शाहजहाँनाबाद. शहंशाह-ए-ग़ाज़ी अबुल फ़तह मुईज़ुद्दीन मुहम्मद जहाँदार शाह साहिब-ए-क़िरान पादशाह-ए-जहान (ख़ुल्द आरामगाह) ने अपनी तवायफ़ माशूक़ा लाल कुँवर को इम्तियाज़ महल का रूतबा देकर मलिका-ए-हिंदुस्तान बना दिया था. मलिका के ख़ानदान वाले, यहाँ तक कि उसके साज़िंदे भी बड़े ओहदेदार हो गए थे. उसकी सहेली सब्ज़ी बेचनेवाली ज़ोहरा भी अब हाथी पर चलती थी तथा शाह बुर्ज़ में मलिका सहेली और बादशाह साथ मज़े भी करती थी.

 बहरहाल, जो क़िस्सा मैं सुना रहा हूँ, वह इम्तियाज़ महल के 'कलावंत' भाई, जिसे अब 'ख़ुशहाल ख़ान' का ख़िताब मिल गया था, और वज़ीर-ए-आज़म ज़ुल्फ़िक़ार ख़ान नुसरत जंग मुहम्मद इस्माईल से जुड़ा हुआ है.

कहते हैं कि बादशाह ने मलिका के कहने पर 'कलावंत' को आगरे का सूबेदार बना दिया. सूबेदारी के फ़रमान पर वज़ीर-ए-आज़म को मुहर लगानी थी. रवायत यह थी कि पदवी के एवज़ कुछ धन देना होता था. वज़ीर-ए-आज़म के बताने पर 'कलावंत' ने पूछा कि कितनी रक़म देनी है. वज़ीर-ए-आज़म ने बड़े आराम कहा कि बस आप 7000 तबले और 5000 तानपुरे दे दें.

 'कलावंत' को काटो तो ख़ून नहीं. बेइज़्ज़ती की शिकायत इम्तियाज़ महल के मार्फ़त बादशाह तक पहुँची. बादशाह ने वज़ीर-ए-आज़म से इस बाबत पूछा और कहा कि ऐसा उसने शायद मज़ाक में कहा होगा. वज़ीर-ए-आज़म ने बाअदब बयान किया कि यह दिल्लगी नहीं थी. अब अमीरों की जगह गाने बजानेवाले ओहदेदार हो रहे हैं और उमरा बेकार बैठे हैं. ये तबले और तानपुरे उनके लिए हैं. वे इन्हें बजाना सीखेंगे ताकि ऊँचे पदों लिए इन साजिंदों से मुक़ाबला कर सकें.

 'कलावंत' को सूबेदारी देने का फ़ैसला वापस ले लिया गया.

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