पाठ्यक्रम में बदलाव
कई दिनों से सोशल मीडिया पर स्कूली सिलेबस बदलने को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं. कुछ अंग्रेज़ी अख़बारों/पोर्टलों पर विद्वानों के लेख भी छपे हैं. विरोध में ओपन लेटर भी लिखे गये हैं. ऐसा करने वाले आम तौर पर एक्टिविस्ट लोग हैं या सरकार के आलोचक लोग हैं. मुझे आश्चर्य यह है कि जिनके बच्चे अच्छे स्कूलों-कॉलेजों में पढ़ रहे हैं और जो साधन संपन्न भी हैं, कम से कम जो मध्य आय वर्ग से हैं, वे चुप क्यों हैं! कुछ लोग बोल रहे होंगे, पर इस मसले पर बहुत अधिक मुखरता नहीं है. वे अभिभावक सोशल मीडिया पर अपनी चिंता या सवाल रख सकते हैं या अपने जन-प्रतिनिधि को मेल भेज सकते हैं. ज़रूरी नहीं कि विरोध ही हो, कुछ शंकाएँ हो, तो वह रख सकते हैं, समर्थन भी जता सकते हैं. बच्चों के भविष्य की चिंता तो सबसे अधिक माता-पिता को होनी चाहिए. इस चिंता को आउटसोर्स नहीं किया जाना चाहिए.
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