नई किताब
कुठांव उपन्यास बेहद रोचक और पठनीय है।
शायद यही कारण है एक दिन में पूरा पढ़ लिया। कहने को कहा जा सकता है कि इसमें मसाले की कमी नहीं है। जिसका कारण इसका कथानक और परिवेश हो सकता है। इसके बावजूद मुस्लिम समाज में जातियों को लेकर जो भेदभाव है ऐसा लगता है बहुत कुछ हिंदू समाज की जातियों जैसी ही हैं। इन जातियों से ही इनका क्लास भी जुड़ा हुआ है। एक थ्योरी जो दी जाती है यहां वर्ण ही वर्ग है। इस उपन्यास में हकीकत के रूप में मौजूद है। इसे पढ़ते हुए मुझे 2 उपन्यास याद आए एक 'कई चांद थे सरे आसमां' दूसरा 'कितने पाकिस्तान'। 'कितने पाकिस्तान' तो औरंगजेब वाले संदर्भ के चलते याद आया लेकिन 'कई चांद थे सरे आसमां' तो इसकी कैरेक्टर सितारा के चलते। जो आंशिक रूप से वजीर खानम से मिलता जुलता लगा। बाकी इसमें मिथकीय किस्से कहानियां भी पर्याप्त है।
इसे पढ़ने पर लगा कि अब्दुल बिस्मिल्लाह के नाम से मुझे अपरचित नहीं रहना चाहिए था। पता नहीं क्यों मैंने कभी इनका ज़िक्र नहीं सुना। खैर इसे तो पढ़ लिया अब इनका दूसरा उपन्यास "झीनी-झीनी बीनी चदरिया" पढ़ना है। एक चीज़ मैंने और नोटिस की मैंने मुस्लिम लेखकों को बहुत कम पढ़ा है विशेषकर कविता। हालांकि मुझे एक कथाकार ने फरीद खां का नाम सजेस्ट किया था।
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