नया उपन्यास (देश द्रोही)
कुछ शुरुआती हिचकोले खाने के बाद यह उपन्यास रफ़्तार पकड़ लेता है। शशांक ने अपने पिछले उपन्यास 'देहाती लड़के' से ध्यान आकर्षित किया था और अपेक्षा भी जगाई थी। इसमें वह पूरी होती तो दिखती है लेकिन कई जगह वे फॉर्मूलेबाजी के शिकार हो गए हैं लेकिन उसमें भी मीडिया और समकाल पर उनकी सटीक टिप्पणियाँ हैं जो उनके विभिन्न पात्रों की जीवन दशाओं से सीधे जुड़ी हुई हैं।
इस उपन्यास का लोकेल दिल्ली, उत्तर भारत का कोई एक शहर और कोई एक कस्बा है। वे जब कस्बाई भाषा में कुछ लिखने का प्रयास करते हैं तो हल्के से डगमगा जाते हैं। मीडिया की अंदरूनी दुनिया में प्रेम और हिंसा का अद्भुत आख्यान रचने में वे फिर भी कामयाब रहते हैं।
शशांक अब 'नई वाली हिंदी' और हिंदी भाषा के उपन्यासों की सन्धिबेला पर खड़े हैं। उन्हें चुनाव करना है कि किधर जाना है लेकिन उन्हें भाषा के स्तर पर काफी रियाज़ करना है।
एक युवा उपन्यासकार का दूसरा ताज़ादम उपन्यास।
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?