राजनीति और मुस्लिम

अप्रैल 8, 2023 - 01:22
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राजनीति और मुस्लिम

=> भारतीय राजनीति में सिर्फ दरी बिछायेगा मुसलमान !!

 हालिया विधानसभा चुनाव में बोरी भर-भर के मुसलमानों का वोटबैंक पाने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया माननीय अखिलेश यादव जी से प्रभावित होकर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली से हालिया खतौली उपचुनाव तक मुसलमानों के वोट बैंक के बल पर 'ZERO' से 9 विधायकों की संख्या तक पहुँचने और उसी बल पर राज्यसभा सांसदी का स्वाद चख़कर सालों बाद संसद का मुँह देखने और राजधानी दिल्ली में सरकारी आवास पाने वाले माननीय जयंत चौधरी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय लोकदल ने ZERO से HERO बनाने पर उसी सरकारी आवास में बैठकर मुसलमानों के लिये RETURN GIFT जारी किया है÷)

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महज़ 6 प्रतिशत वोटबैंक वाली जाट बिरादरी से ताल्लुक़ रखने वाले RLD मुखिया माननीय जयंत चौधरी जी ने 21 प्रतिशत वोटबैंक वाली मुस्लिम बिरादरी के 'मौहम्मद वसीम राजा' को पद से हटाकर महज़ 4 प्रतिशत वोटबैंक वाली गुर्जर बिरादरी से आने वाले 'माननीय अखिलेश यादव जी के पूर्व क़रीबी सिपहसालार' मुस्लिम बाहुल 'मीरापुर विधानसभा सीट' से हाल ही में विधायक निर्वाचित हुये चंदन चौहान को राष्ट्रीय लोकदल (युवा मोर्चा) का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत कर दिया है।

 मतलब हद हो गई है। सेक्युलरिज़्म के नाम पर सियासत करने वाले इन तथाकथित सेक्युलर नेताओं का पेट भरने का नाम ही नहीं ले रहा है। पहले 2022 के विधानसभा चुनावों में पूरब से पश्चिम तक अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी ने 'अंधा बाँटे रेवड़ी, अपनों-अपनों को दे' वाली कहावत चरितार्थ करते हुये उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में अन्य सामान्य विधानसभा सीटें तो छोड़िये, मोदी-योगी-भाजपा को हटाने के नाम पर चुन-चुनकर मुस्लिम बाहुल विधानसभा सीटों पर मज़बूत से मज़बूत मुस्लिम उम्मीदवारों के टिकट काटकर उनके घर बिठा दिया गया, और अब संगठन की राजनीति में भी इन दोनों नेताओं को महज़ अपना घर भरना है और अपने प्रिय लोगों को ही सत्ताधीश करना है।

ये कोई पहला मामला नहीं है जब अखिलेश-जयंत की जोड़ी ने अपने सबसे बड़े और सबसे मज़बूत वोटबैंक को दरकिनार कर अपने सबसे छोटे और सबसे कमज़ोर वोटबैंक से आने वाले अपने प्रिय लोगों/चहीतों को विधानसभा टिकट, विधायक की कुर्सी या संगठन में बड़ी ज़िम्मेदारी देकर मुस्लिम समाज के साथ हक़तलफ़ी की है।

 आपको बता दें इससे पहले 10 मार्च 2022 को 18वीं विधानसभा के चुनावी नतीजों में अपना सारा वोटबैंक खिसकने और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाले 'यादव बहुल बेल्ट' बुरी तरह हारने समेत जयंत चौधरी के नेतृत्व वाले 'जाट बहुल बेल्ट' हारने और महज़ मुसलमानों के वोटबैंक के बल पर सपा की 111 और राष्ट्रीय लोकदल की 8 कुल 119 विधानसभा सीटें जीतने की सच्चाई सामने आने के बावजूद इन्होंने मुस्लिम बाहुल आज़मगढ़ लोकसभा समेत हालिया मुस्लिम बाहुल खतौली विधानसभा उपचुनाव में क्रमशः आज़मगढ़ में परिवार से यादव प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव और खतौली में कई ज़िले और विधानसभा सीटें कुदाकर महज़ 4 प्रतिशत वाले एक बाहुबली और बाहरी प्रत्याशी मदन गोपाल कसाना उर्फ मदन भईया को चुनावी मैदान में उतारा जहाँ एक जगह जीत और एक जगह हार का सामना करना पड़ा क्योंकि खतौली में तो फिर भी विपक्ष की तरफ से 'इकलौता प्रत्याशी' होने की वजह से 'बाहरी और बाहुबली' मदन भईया मुस्लिम बाहुल सीट से सीधे-सीधे चुनाव जीतकर विधानसभा पहुँच गये लेकिन आज़मगढ़ में सपा मुखिया अखिलेश यादव से धोखा खाने के बाद घर वापसी किये बसपा सुप्रीमो मायावती के सिपाही शाहआलम उर्फ गुड्डू जमाली को ढ़ाई लाख से ज़्यादा वोट देकर मुसलमानों ने ज़्यादा भरोसा किया और सैफई परिवार के धर्मेंद्र यादव को भाजपा के नचनिया उम्मीदवार दिनेश लाल निरहुआ से क़रारी शिकस्त खानी पड़ी थी। ख़ैर, अब बात करें संगठन की राजनीति में राष्ट्रीय लोकदल द्वारा 21 प्रतिशत वोटबैंक वाली मुस्लिम बिरादरी के 'मौहम्मद वसीम राजा' को पद से हटाकर महज़ 4 प्रतिशत वोटबैंक वाली गुर्जर बिरादरी से आने वाले 'माननीय अखिलेश यादव जी के पूर्व क़रीबी सिपहसालार' चंदन चौहान को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की तो आपको जानकर हैरानी होगी कि माननीय जयंत चौधरी जी के ये नये सेनापति हाल ही में सपा-RLD गठबंधन में रातोंरात सपा छोड़ RLD के टिकट पर उस मीरापुर विधानसभा सीट से पहली बार 'माननीय विधायक' का ख़िताब पाकर निर्वाचित हुये हैं जो कि मुस्लिम बाहुल है और वहाँ से मुस्लिम उम्मीदवारों समेत मुसलमानों ने दिल पर पत्थर रखकर इसलिये एक दल-बदलू को वोट देकर अपना विधायक चुना क्योंकि माननीय अखिलेश यादव जी और माननीय जयंत चौधरी जी का निर्देश था और लड़ाई मोदी-योगी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी से थी जिसको हराने और हटाने का ठेका मुसलमानों के पास है और शायद वो इस धरती पर इसी मक़सद को पूरा करने के लिये पैदा भी हुये हैं।

आपको बता दें राष्ट्रीय लोकदल मुखिया माननीय जयंत चौधरी जी ख़ुद राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठकर सिर्फ युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से 'मौहम्मद वसीम राजा' का शिकार नहीं किये हैं बल्कि इससे पहले 2022 विधानसभा चुनावों में माननीय जयंत चौधरी जी ने मौहम्मद वसीम राजा का विधानसभा टिकट भी काटा था और चुनावी नतीजों के फौरन बाद पूर्व में कई साल प्रदेश से लेकर देश में मृत पड़ी RLD की ज़िन्दा लाश को अपनी जेब से ढ़ोने वाले, कार्यकर्ताओं को जोड़ने वाले, रैलियाँ आयोजित करने वाले, सभाएँ प्रायोजित करने वाले, नारे लगाने वाले, लोगों को चाय-पानी-नाश्ता कराने वाले, गाड़ियों में पेट्रोल-डीज़ल भराने वाले उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष रहे डाॅक्टर मसूद अहमद को भी उनकी कुर्सी से रातों-रात उतारकर घर बिठा चुके हैं।

हालाँकि, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि माननीय अखिलेश यादव जी और माननीय जयंत चौधरी जी के पास सत्ता से लेकर संगठन तक बोरी भर-भर कर वोट देने-दिलाने वाले मुस्लिम नेताओं या रहनुमाओं की कमी है। अगर बात करें राष्ट्रीय लोकदल की तो अगर उनको 21 प्रतिशत वोटबैंक वाले मुस्लिम समाज के 'मौहम्मद वसीम राजा' को पद से हटाना ही था या संगठन में कोई फेरबदल करना था तो हाल ही में अभी महज़ ज़िन्दा होने के कगार पर पहुँची राष्ट्रीय लोकदल को बुरे वक़्त और मृत हालत में ढ़ोने वाले, और ज़्यादातर माननीय जयंत चौधरी जी के दादा, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के ज़माने से राष्ट्रीय लोकदल से जुड़े, बेहद पढ़े-लिखे, डाॅक्टर, इंजीनियर, MBA और यहाँ तक कि PCS-J का EXAM तक PASS कर जज की कुर्सी छोड़कर राष्ट्रीय लोकदल को ढ़ोने वाले,

 1-सहारनपुर/शामली के बहुत बड़े राजनीतिक घराने के वारिस, पूर्व विधायक-राव राफे अली ख़ाँ के पुत्र, राव वारिस अली ख़ाँ-पूर्व विधायक,

 2-अमरोहा के बहुत बड़े राजनीतिक घराने के वारिस, अशफाक़ अली ख़ान-पूर्व विधायक, पूर्व BDC, पूर्व ज़िला पंचायत सदस्य,

 3-बुलंदशहर के बहुत बड़े राजनीतिक घराने के वारिस, पूर्व विधायक-इम्तियाज़ अली ख़ाँ के पुत्र, दिलनवाज़ अली ख़ाँ-पूर्व विधायक,

4-मुज़फ्फरनगर के बहुत बड़े राजनीतिक घराने के वारिस, पूर्व विधायक-पूर्व सांसद (लोकसभा/राज्यसभा) अमीर आलम ख़ाँ के पुत्र, नवाज़िश आलम ख़ाँ-पूर्व विधायक,

5-मुज़फ्फरनगर के बहुत बड़े राजनीतिक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुत बड़े औद्योगिक घराने के वारिस, पूर्व विधायक-पूर्व MLC-पूर्व सांसद (लोकसभा) क़ादिर राणा के भतीजे, पूर्व विधायक-नूरसलीम राणा के भाई, पूर्व ज़िला पंचायत अध्यक्ष इंतेख़ाब राणा के पति, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया हाउस 'शाह टाइम्स' के मालिक, शाहनवाज़ राणा-पूर्व विधायक,

 6-मुज़फ्फरनगर के बहुत बड़े राजनीतिक घराने के वारिस, पूर्व विधायक-पूर्व MLC मुश्ताक़ चौधरी के पुत्र, नदीम चौधरी,

7-बाग़पत के हवेली परिवार के नवाब, और बहुत बड़े राजनीतिक घराने के वारिस, पूर्व विधायक-नवाब शौकत हमीद खाँ के पोते, पूर्व विधायक/पूर्व मंत्री नवाब कौकब हमीद ख़ाँ के पुत्र, नवाब अहमद हमीद,

 8-मेरठ के बहुत बड़े राजनीतिक घराने के वारिस, पूर्व विधायक परवेज़ हलीम ख़ान का परिवार,

 9-इत्यादि, इत्यादि, इत्यादि। तो राष्ट्रीय लोकदल पार्टी या उनके मुखिया अगर चाहते तो उनके पास 21 प्रतिशत वोटबैंक वाले मुस्लिम समाज से डाॅक्टर मसूद अहमद और मौहम्मद वसीम राजा के विकल्प के तौर पर और भी कई चेहरे मौजूद थे, और इसी तरह समाजवादी पार्टी के पास भी अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बाद राष्ट्रीय महासचिव के पद पर सैफई परिवार के ही रामगोपाल यादव और प्रदेश अध्यक्ष के पद पर लगातार दूसरी बार नरेश उत्तम पटेल समेत अन्य पदों पर पूरब से पश्चिम तक तमाम मुस्लिम नेता, चेहरे और रहनुमा हैं लेकिन शायद समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल जैसे राजनीतिक संगठनों ने जब तय ही कर रखा है कि भारतीय राजनीति में सेक्युलरिज़्म के नाम पर मुसलमानों को सिर्फ और सिर्फ वोटबैंक समझकर उनसे दरी बिछवाने और नारे लगवाने का काम लेना है तो फिर उनको भी याद रखना चाहिये कि

÷ ऊपर वाले के घर में देर है-अंधेर नहीं। साल 2014 से देश की सियासत में जब से भारतीय जनता पार्टी के मंच पर मोदी-योगी और अमित शाह जैसे फायरब्रांड नेताओं का उदय हुआ है जो सिर्फ और सिर्फ वोटबैंक की ख़ातिर अपने सियासी दुश्मन को भी सत्ता से लेकर संगठन तक में विभिन्न पदों पर एडजस्ट करने का काम करते हैं, तब से आपने भले ही कई चुनाव लड़े हों और पाखंड के बल पर कुछ सीटें हासिल भी कर ली हों लेकिन एक बार भी आप सत्ता में वापसी नहीं कर पाये, और अगर आगे भी ऐसा ही चलता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब आपको सत्ता क्या अपनी ख़ुद की विधायकी और सांसदी बचाने तक के लाले पड़ जायेंगे। अल्लाह आप सबको हिदायत अता फरमायें जल्दी से जल्दी। जय हिंद-जय भारत-जय समाजवाद। 'न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालों, तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में...'

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 (लेखक उस्मान सिद्दीक़ी वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले 14 साल राजधानी दिल्ली और नोएडा की फिल्मसिटी स्थित कई न्यूज़ चैनलों में पत्रकारिता करने के बाद वर्तमान में राजधानी लखनऊ स्थित एक डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़े हैं) Usmaan Siddiqui की कलम से

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