ग़ज़ल
ख़ुश्क आंखे हैं तो दिल ही मेरा वीरान रहे
कुछ तो गर्दिशे दौरां तेरी पहचान रहे
कितना महसूस किया था ग़में दुनिया हमने
तेरी महफ़िल में भी पहुंचे तो परिशान रहे
आज आजाये तो लम्हात जुदाई कट जाये
आज की नीन्द का आँखो पे एहसान रहे
और क्या होता ज़माने की लिए जी के 'वसीम '
चन्द सांसो का मेरी ज़ीस्त पर एहसान रहे
प्रो वसीम बरेलवी
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