ग़ज़ल
हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में यूं नमी सी है
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी सी है
दिल को समझाएं किस तरह से हम
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है
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