हिन्दी ग़ज़ल

मार्च 31, 2023 - 02:05
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हिन्दी ग़ज़ल

गोपालदास "नीरज" »

जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला

मेरे स्वागत को हर इक जेब से ख़ंजर निकला

 मेरे होंटों पे दुआ उस की ज़बाँ पे गाली

जिस के अंदर जो छुपा था वही बाहर निकला

ज़िंदगी भर मैं जिसे देख कर इतराता रहा

 मेरा सब रूप वो मिट्टी का धरोहर निकला

रूखी रोटी भी सदा बाँट के जिस ने खाई वो

 भिकारी तो शहंशाहों से बढ़ कर निकला

 क्या अजब है यही इंसान का दिल भी 'नीरज'

 मोम निकला ये कभी तो कभी पत्थर निकला

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