शेर
निगाहें ढूँडती हैं रफ़्तगाँ को
सितारे टूटते हैं आसमाँ से
मनाते ख़ैर क्या हम जिस्म ओ जाँ की
उसे चाहा था हम ने जिस्म ओ जाँ से
Rasa Chugtai
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निगाहें ढूँडती हैं रफ़्तगाँ को
सितारे टूटते हैं आसमाँ से
मनाते ख़ैर क्या हम जिस्म ओ जाँ की
उसे चाहा था हम ने जिस्म ओ जाँ से
Rasa Chugtai