ग़ज़ल
तेरा सानी कोई हुआ नहीं तेरा हुस्न हुस्न-ए-कमाल है
न जहाँ में तेरी नज़ीर है न जहाँ में तेरी मिसाल है
वही अपनी मंजिलें पा गया तेरे इ'श्क में जो फ़ना हुआ
जिसे इ'श्क तेरा मिला उसे कोई रंज है न मलाल है
ये किसी का मुझ पे हुआ करम मेरे सामने है मिरा सनम
मेरे दिल के खाने में हर घड़ी तेरी याद तेरा ख़्याल है
तू हीं जुस्तुजू है जुनून है तू ही चैन है तू सुकून है
मुझे कोई तुझ से जुदा करे ये भला किसी की मजाल है
तेरे दम पे है मेरी जिंदगी तेरा इ'श्क है मेरी बंदगी
तेरे जिक्र-ओ-फ़िक्र को छोड़ कर मुझे एक पल भी मुहाल है
कोई ग़म भी दिल का अ'याँ नहीं मुझे कोई फिक्र-ए-जहाँ नहीं
मेरी आरजू का हंसी चमन तेरी चाहतों से बहाल है
तेरे घर से दूर न जा सकूं मैं "शायाँ "ये भी न कह सकूँ
इसी ग़म से दिल में है बेकली इसी ग़म से दिल में मलाल है
ख़वाजा शायान हसन
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?