ग़ज़ल

अप्रैल 1, 2023 - 08:02
अप्रैल 1, 2023 - 11:19
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ग़ज़ल
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जिंदगी काविश-ए-बातिल है मिरा साथ न छोड़

 तू हीं इक उम्र का हासिल है है मिरा साथ न छोड़

लोग मिलते हैं सर-ए-राह गुज़र जाते हैं

तू हीं इक हम-सफ़र-ए-दिल है मिरा साथ न छोड़

 तू ने सोचा है मुझे तू ने सँवारा है मुझे

तू मेरा जेहन मेरा दिल है मेरा साथ न छोड़

 तू न होगा तो कहाँ जा के जलूंगा शब भर

तुझ से हीं गर्मी-ए-महफिल है मिरा साथ न छोड़

 मैं कि बिफ़रे हुए तुफाँ में हूँ लहरों लहरों

तू कि आसूदा-ए-साहिल है मिरा साथ न छोड़

 इस रिफ़ाकत को सिपर अपनी बना लें जी लें

 शहर का शहर हीं कात़िल है मिरा साथ न छोड़

 एक मैंने हीं उगाए नहीं ख़वाबों के गुलाब 

तू भी इस जुर्म में शामिल है मिरा साथ न छोड़ 

अब किसी राह पे जलते नहीं चाहत के चराग़

तू मेरी आखिरी मंजिल है मिरा साथ न छोड़

मज़हर इमाम

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