ग़ज़ल

अप्रैल 1, 2023 - 20:05
अप्रैल 1, 2023 - 20:06
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ग़ज़ल
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कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे

तू ने आँखों से कोई बात कही हो जैसे

जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे

 जान बाक़ी है मगर साँस रुकी हो जैसे

 हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है

 मुझ से कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे

 राह चलते हुए अक्सर ये गुमाँ होता है

वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे

 एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का सफ़र

 ज़िंदगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे

 

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं

 मेरी हर साँस तिरे नाम लिखी हो जैसे

फ़ैज़ अनवर

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