ग़ज़ल 166

अप्रैल 2, 2023 - 02:15
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ग़ज़ल 166

आँखों को इंतज़ार की भट्टी पे रख दिया

 मैंने दिये को आँधी की मर्ज़ी पे रख दिया

आओ तुम्हें दिखाते हैं अंजामे-ज़िंदगी

सिक्का ये कह के रेल की पटरी पे रख दिया

 फिर भी न दूर हो सकी आँखों से बेवगी

 मेंहदी ने सारा ख़ून हथेली पे रख दिया

दुनिया क्या ख़बर इसे कहते हैं शायरी

मैंने शकर के दाने को चींटी पे रख दिया

अंदर की टूट -फूट छिपाने के वास्ते

जलते हुए चराग़ को खिड़की पे रख दिया

 घर की ज़रूरतों के लिए अपनी उम्र को

बच्चे ने कारख़ाने की चिमनी पे रख दिया

पिछला निशान जलने का मौजूद था तो

 फिर क्यों हमने हाथ जलते अँगीठी पे रख दिया

मुनव्वर राना

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