कथाकार ( निर्मल वर्मा)
अपनी धरती को बाहर से देखना - उसे देख कर हमें अपने दुख, शिकायतें, पीड़ाएँ-कितने क्षुद्र जान पड़ते हैं। पहली बार महसूस होता है, कि हमारा अकेलापन - अंतरिक्ष में घूमती इस धरती के अथाह अकेलेपन से छिटक कर हममें आ टपका है, जिसके कारण वह अंतरिक्ष में उतनी ही अकेली है, जितना हम-इस दुनिया में।
मैंने बहुत अर्से तक धरती की इस गोल बिंदी का फोटो अपनी दीवार से चिपकाए रखा था - जब मुझे किसी बात पर गहरा क्लेश होता था - तो उसे देख कर वह अपने-आप लुप्त हो जाता था। खाली स्पेस में घूमती हुई वह धरती मुझे उतनी ही शांति देती थी, जितनी एक संत की निर्वैयक्तिक ध्यानावस्थित अवस्था...
~ निर्मल वर्मा
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