लेखक का जीवन

मार्च 27, 2023 - 02:39
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लेखक का जीवन

एक प्रेम से ज़्यादा मधुर

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 जिन्होंने कुंवर और भारती नारायण की गृहस्थी देखी है, वे जानते हैं कि दोनों में कितना प्रेम था। वे एक-दूसरे की कितनी परवाह करते थे। पति-पत्नी के बीच ऐसा होना स्वाभाविक है लेकिन शायद तब नहीं, जब दो अलग विचारधारा के लोग एक छत के नीचे रह रहे हों। भारतीजी खाँटी मार्क्सवादी विचारधारा में दीक्षित थीं, जबकि कुंवरजी का मानस विचारधारा के प्रदत्त खाँचों को स्वीकार नहीं करता था।

 दिलचस्प बात यह है कि इन्हें परिणय-सूत्र में जोड़ने वाली कड़ी कुंवरजी की कविता-पुस्तक ‘आत्मजयी’ थी। जब हिंदी के मतिमंद मार्क्सवादी आलोचक इसे महज अस्तित्ववादी चश्मे से देखने में व्यस्त थे, तब भारती गोयनका को इस खंड-काव्य में अपने लिए एक महबूब मनुष्य दिखा। वह कहतीं, ‘मैंने आत्मजयी पढ़ रखी थी।

 इसके बाद मुझे कुंवरजी के साथ विवाह के निर्णय में आसानी हुई।’ उनकी आसानी को आप आत्मजयी की इन पंक्तियों में समझिए, ‘यदि तुम्हारे अनुसरण से भिन्न भी / मेरी कोई सत्ता है / तो उसे आक्रांत मत करो/ अवसर दो / कि वह पनप सके प्रसन्न / ख़ुली धूप और ताज़ी हवा में / उसे अपनी शक्ति से नष्ट मत करो/ उससे शक्ति ग्रहण करो, क्योंकि तुम्हें / अभी उसके द्वारा भविष्य में भी जीना है’।

 हालांकि दोनों के बीच मतांतर के बाद हर बार हालात सामान्य नहीं रहे। ऐसा भी हुआ कि कई दिनों तक उनमें बोलचाल बंद रही। लेकिन जीवन को, ‘सुंदर सुलहों’ का नाम देनेवाले कुंवर नारायण बातचीत फिर बहाल कर लेते और इस तरह उनके बीच लंबी निभ गई।

अलसुबह जगकर लिखने के आदी कुंवर नारायण अपने काग़ज़ सबसे पहले भारतीजी की तरफ़ बढ़ाते। भारतीजी उस पर अपनी दो टूक राय देतीं।

 कुंवरजी कुछ लाड़ में अक्सर कहा करते, ‘हमारी सबसे सख़्त आलोचक तो घर में ही हैं’।

भारतीजी का कुंवर नारायण का जीवन ही नहीं, उनका लेखन संवारने-सहेजने में अप्रतिम योगदान है। वह उनके देहावसान के बाद भी अपनी बीमारी से लड़ते-थकते उनकी डायरियां और नोट्बुक बहुत प्रेम से सहेज रही हैं। उनके पास कुंवरजी की ही कविता-पंक्ति का सम्बल है, ‘एक प्रेम से ज़्यादा मधुर / हो सकती हैं उसकी स्मृतियाँ’। 

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