औरंगाबाद में भूत मेला की है अनोखी कहानी
बिहार के औरंगाबाद के उस प्रेत मेला की कहानी बताने जा रहे हैं। जहां भूतों का मेला लगता है। बकायदा उनकी हाजिरी लगती है। उन्हें सजा भी दी जाती है।
चारों तरफ हवन कुंड में जलने वाली सामग्री की गंध। मेले में औरतों की भीड़। जमीन पर बैठकर अपने बाल खोलकर भूत से खेल रही महिलाएं। भूतों को नरक कुंड में भेजने की की जा रही व्यवस्था। आप सोचेंगे हम 21वीं सदी में अंधविश्वास की ये कौन सी कहानी लेकर बैठ गए। आपको जरा ठहरना होगा। क्योंकि इस कहानी में आस्था पर अंधविश्वास हावी है। प्रेत-भूत बाधा से परेशान महिलाओं का यहां इलाज होता है। भूत आते हैं। मेला लगता है। मंदिर में माता अष्टभुजी उनकी इलाज करती हैं। माता की कृपा से लोग ठीक होकर चले जाते हैं। ये पूरा मेला औरंगाबाद जिले से 30 किलोमीटर दूर कुटुंबा प्रखंड के महुआ धाम में लगता है।
बिहार के औरंगाबाद में 21 वीं सदी के वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास हावी है। यहां प्रेतबाधा का निवारण हो रहा है। यहां न तो तंत्र का जोर चलता है न ही मंत्र का। जोर चलता है तो सिर्फ एक अदृश्य शक्ति का। यहां न तो ओझा की ओझाई काम आती है और न ही तांत्रिको की फूंक। यहां मां अष्टभुजी के धाम पर आते ही भूत नाचने लगते है। यहां अदृश्य शक्ति यानी मां अष्ठभुजी जज भी है। वे भूतों को सजा देती है। सजा स्वरूप नरक कुंड में डुबोकर मार डालती है। यह सब होता है औरंगाबाद के कुटुम्बा प्रखंड के महुआधाम में। जहां हर साल चैती और कार्तिक नवरात्र में कूदती-फांदती इन महिलाओं को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये महिलाएं भूत प्रेत बाधा की शिकार हैं।
अंधविश्वासियों पर विज्ञान भी बेअसर है। हालांकि प्रेत बाधा से ग्रसित लोग और उनके परिजन इस बात से इतेफाक नहीं रखते। यहां ऐसे लोग भी मिल जाते है, जो यह कहते है कि भूतना मेले में आने से उनके परिजन की कैंसर जैसी बीमारी भी ठीक हो गयी है। हालांकि चिकित्सा विज्ञानी इन चीजो को सिरे से नकारते हैं और कहते हैं कि चिकित्सा विज्ञान में हर प्रकार की बीमारी का इलाज संभव है। ये लोग भूत प्रेत बाधा से ग्रस्त नहीं बल्कि मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं और इलाज से इनकी बीमारी ठीक हो सकती है।
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