कविता
आज कोई ज़ख़्म
इतना नाज़ुक नहीं
जितना यह वक़्त है
जिसमें हम-तुम सब
रिस रहे हैं चुप-चुप.
???? शमशेर
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?
आज कोई ज़ख़्म
इतना नाज़ुक नहीं
जितना यह वक़्त है
जिसमें हम-तुम सब
रिस रहे हैं चुप-चुप.
???? शमशेर