सरकारी कागज में एक मात्रा से 700 हिंदू परिवारों की जमीन छिन गई
बेंगलुरु में सरकारी दस्तावेजों मेंं मात्रा की गलती का खामियाजा हिंदू शरणार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। दरअसल इन लोगों के बंगाली सरनेम में सरकार लिखा था। जोकि सॉफ्टवेयर की गलती के चलते सरकारी टाइप हो गया।
नाम में मात्रा बदल जाने का खामियाजा कितना बड़ा होता है। पूर्वी पाकिस्तान से आए 700 हिंदू परिवारों की जमीन छिन जाना इसकी सबसे बड़ी नजीर है। दरअसल इनके बंगाली सरनेम में 'सरकार' लिखा था जो कि गलती से 'सरकारी' लिख गया। इसके बाद हिंदू शरणार्थियों की जमीन को सरकारी घोषित कर दिया गया। अब ये लोग दर-ब-दर भटकने को मजबूर हैं। पूर्वी पाकिस्तान से आए ये हिंदू शरणार्थी फिलहाल कर्नाटक में हैं। जहां जमीनी अभिलेखों में गलती के चलते ये सभी अपने हक से वंचित हैं। जोकि बीते पांच सालों से इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं। साल 1971 में हजारों की तादाद में हिंदू शरणार्थी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आए थे। जिन्हें कर्नाटक सहित सात राज्यों में शरणार्थी शिविरों में रखा गया था। हर परिवार को नई शुरुआत करने के लिए पांच एकड़ जमीन दी गई थी।
सिंधनूर तालुक के चार पुनर्वास शिविरों - आरएच2, आरएच3, आरएच4 और आरएच5 में बसे 22,000 हिंदू शरणार्थी पहले से बसे हैं। इनके प्रतिनिधि प्रसेन राप्टाना विभूति सरकार के लिए सहारा बने। पिछले दिसंबर में तकनीकी समस्या के बारे में प्रसेन राप्टाना ने रायचूर डीसी पत्र लिखा। एक महीने पहले लिंगसुगुर के सहायक आयुक्त ने डीसी से बातचीत के बाद इस मुद्दे पर सहमति जताई थी। हमारे सहयोगी टीओआई के पास उस पत्र की कॉपी भी है। सभी प्रभावित किसान आरएच 2, 3 और 4 के निवासी हैं। पंकज सरकार ने कहा, 'हमें बिना किसी गलती के इस अजीब समस्या से जूझना पड़ रहा है। सरकार ने कहा, हम सरनेम 'सरकार' में 'ी' जुड़ जाने के कारण जमीन के मालिकाना हक पाने में फंस गए थे।
एक 65 वर्षीय किसान विभूति सरकार भी उन लोगों में से हैं। जिन्हे बीते कई दशकों से अपनी जमीन के लिए जूझना पड़ा। इनकी जमीन को अचानक सरकारी संपत्ति के रूप में चिह्नित किया गया। सरकारी कार्यालय में उनके उपनाम को लेकर पूरा मामला है। कहने को तो बस यह एक मात्रा की गलती है। लेकिन सरकार से 'सरकारी' के स्वामित्व में परिवर्तन का मतलब क्या होता है? यह विभूति से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता है। जिनको रायचूर जिले के सिंधनूर तालुक में पांच एकड़ में बोई गई ज्वार की फसल के लिए पिछले साल बीमा से वंचित कर दिया गया। उनकी शिकायत के आधार पर राजस्व विभाग में जांच की गई तो नई जानकारी पता चली। जिसमें पाया गया कि तीन पुनर्वास शिविरों में बसे अन्य 726 लोगों की जमीन को सरकारी जमीन के रूप में चिन्हित किया गया था। कर्नाटक सरकार के भूमि रिकॉर्ड पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों में यह देखने को मिला।
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