कविता
पतझड़ री
छाती पर पग
धर पूगां
बसंत रै घरां
आ बैठ
बात करां... -
रामस्वरूप किसान
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पतझड़ री
छाती पर पग
धर पूगां
बसंत रै घरां
आ बैठ
बात करां... -
रामस्वरूप किसान