शेर
जिसे कहते हो तुम इक क़तरा-ए-अश्क
मिरे दिल की मुकम्मल दास्ताँ है
~ राग़िब मुरादाबादी
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जिसे कहते हो तुम इक क़तरा-ए-अश्क
मिरे दिल की मुकम्मल दास्ताँ है
~ राग़िब मुरादाबादी