शेर
अब रूह चाहती है कोई दूसरा मक़ाम
इक बोझ सा थके हुए आसाब से उतार
Suhail Azad
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अब रूह चाहती है कोई दूसरा मक़ाम
इक बोझ सा थके हुए आसाब से उतार
Suhail Azad