शेर
तुझसे लाज़िम थी मोहब्बत नादानी कब थी
हमको मालूम था तुमने निभानी कब थी
अब जो उदास तबीयत है रोना कैसा
पहले भी मेरी कोई शाम सुहानी कब थी
परवीन शाकिर
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तुझसे लाज़िम थी मोहब्बत नादानी कब थी
हमको मालूम था तुमने निभानी कब थी
अब जो उदास तबीयत है रोना कैसा
पहले भी मेरी कोई शाम सुहानी कब थी
परवीन शाकिर