ग़ज़ल
दुआ करो कि ये पौधा सदा हरा हीं लगे
उदासियों से भी चेहरा खिला खिला लगे
ये चाँद-तारों का आँचल उसी का हिस्सा है
कोई जो दुसरा ओढ़े तो दूसरा हीं लगे
नहीं है मेरे मुकद्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो जरा सुबह की हवा हीं लगे
अजीब शख़्स है नाराज हो के हंसता है
मैं चाहता हूँ खफ़ा हो तो खफ़ा हीं लगे
बशीर बद्र
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