सेवानिवृत्त की आयु और भारत

अप्रैल 1, 2023 - 19:54
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सेवानिवृत्त की आयु और भारत

रिटायरमेंट एज नहीं बढ़ायी जानी चाहिए....

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 बिहार के वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा है कि अगर भारत सरकार अपने कर्मियों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 60 से 62 साल करती है, तो बिहार सरकार भी अपने कर्मियों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने पर विचार करेगी. विधानसभा में कांग्रेस नेता अजीत शर्मा की आयु बढ़ाने की माँग के जवाब में चौधरी ने यह कहा है. शर्मा का तर्क है कि लोगों की औसत आयु बढ़ रही है, इसलिए रिटायरमेंट एज भी बढ़ाना चाहिए.

बिहार का टीएफ़आर (कुल प्रजनन दर) 3.0 है, जो देश में सबसे अधिक है. यह राष्ट्रीय औसत से डेढ़ गुना और दक्षिणी राज्यों की तुलना में दो गुना है. इसका अर्थ यह है कि आबादी बढ़ रही है और युवाओं-किशोरों की तादाद बढ़ रही है. साथ ही, राष्ट्रीय स्तर की तरह बुज़ुर्ग भी बढ़ रहे हैं. जो अधिक समय से सरकारी कर्मी हैं, उन्हें पुरानी व्यवस्था के अनुसार पेंशन भी देना होता है. साथ ही, मुख्यमंत्री वृद्ध पेंशन योजना भी है.

आबादी के अनुपात में सरकारी कर्मियों की संख्या भी बीते दशकों में घटी है तथा सरकार की वित्तीय स्थिति को देखते हुए यह उम्मीद करना ठीक नहीं है कि सरकारी नौकरियों की संख्या बढ़ेगी. बुज़ुर्गों की देखभाल का ख़र्च भी आगामी दशकों में तेज़ी से बढ़ेगा.

 राष्ट्रीय स्तर पर जनसांख्यिकी लाभांश (डेमोग्राफ़िक डिविडेंड) जल्दी ख़त्म हो जाएगा यानी हमारी आबादी में आश्रितों (बच्चों और बुज़ुर्गों) की संख्या कामकाजी आयु के लोगों से अधिक हो जायेगी. ऐसे में राष्ट्रीय विकास की गति धीमी होगी. वैसे भी अगले दशक के लिए कह ही दिया गया है कि ग्रोथ रेट 6.5 रहेगी. इतनी गति तो पीछे के ख़सारे की भरपायी भी नहीं कर सकेगी.

इस स्थिति में बिहार में कोई चमत्कार तो हो नहीं जाएगा कि बढ़ती आबादी के लिए रोज़गार के मौक़े भी ख़ूब बने और बच्चों-बुज़ुर्गों की अच्छी देखभाल भी हो सके. बिहार में और अधिक टीएफ़आर वाले अन्य राज्यों में आगे यह दर घटेगी. तो, रिटायरमेंट एज बढ़ाने का कोई तुक नहीं बनता है.

इसे फ़्रांस के हालिया प्रकरण से समझा जाए. बुज़ुर्गों की देखभाल, पेंशन आदि की फ़ंडिंग कामकाजी आबादी से आती है. वहाँ साठ के दशक के शुरू में सेवानिवृत्त हो रहे एक व्यक्ति पर औसतन चार कामकाजी लोग हुआ करते थे. यह अनुपात 2020 में 1.7 हो गया और अगले दशक में 1.5 हो जाएगा. पेंशन सुधार के क्रम में फ़्रांस में सेवानिवृत्ति की आयु 62 से बढ़ाकर 64 की गयी है, जो 2030 में लागू होगी. इसका भारी विरोध हो रहा है और सबसे अधिक विरोध युवा कर रहे हैं.

 एक छोटे सर्वे में बताया गया है कि पूरे देश में 63 फ़ीसदी लोग पेंशन सुधार के विरोध में हैं. यह आँकड़ा 18 से 24 साल के युवाओं में 71 फ़ीसदी है. फ़्रांस के युवा कह रहे हैं कि वे अपने पेंशन के लिए चिंतित नहीं हैं, बल्कि वे अपने माता-पिता के लिए विरोध प्रदर्शनों में आये हैं. वे नहीं चाहते कि अधिक आयु में उनके माता-पिता काम करें.

 यह भी अहम है कि नयी भर्तियों से गति और गुणवत्ता बढ़ती है. हमारे यहाँ भी ऐसी किसी कोशिश का विरोध होना चाहिए. बुज़ुर्गों को नाती-पोता के साथ रहना सभ्यता के लिए बेहद ज़रूरी है. वे अनुभव, ज्ञान और विशेषज्ञता से समाज को लाभ पहुँचा सकते हैं. युवाओं के रोज़गार पर ध्यान दिया जाए ताकि वे बच्चों और बड़े-बूढ़ों की अच्छी देखभाल कर सकें तथा अपने लिए एक डिग्निफ़ाइड लाइफ़ बना सकें. भारत ही नहीं, दुनियाभर में हर क्षेत्र में बुज़ुर्गों का बेमतलब थका हुआ, ऊबा हुआ नेतृत्व है.

 इस जेरोंटोक्रेसी को भी ख़त्म होना चाहिए.

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