किताबे
सेल्फ हेल्प भाषा शैली मानसिक तौर पर बलवान होना सिखाती है। आज के परिवेश में कुछ लोग यह भी कहते हैं कि हम इसका अपने दैनिक जीवन में उपयोग नहीं कर सकते। लेकिन मेरा मानना है कि मन शांत करने के लिए इन पुस्तकों में कमाल सामग्री प्राप्त होती है।
????जहाँ भारत में मानसिक स्वास्थ पर लोगों का बहुत कम ध्यान जाता है वहाँ बहुत ज़रूरी है कि हर उम्र का व्यक्ति सेल्फ हेल्प पढ़ना शुरू करे। इससे हमें यह पता चलेगा कि हम अपने आस पास के लोगों और अपने चहेतों के मानसिक स्वास्थ को क्यों नहीं समझ पा रहे हैं। हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए??
????क्या आप जानते हैं सामने वाले को आपकी कही कोई भी रैंडम बात गहरे अवसाद में पहुँचाने के लिए पर्याप्त हो सकती है। ????उदाहरण के तौर पर--- अरे तुम तो बहुत मोटी/मोटे पतली/पतले हो गए हो खान पान पर ध्यान नहीं क्या?) ❌️यह बात आपने भले ही अपने हिसाब से एक नार्मल तरीके में बोली हो लेकिन यह बिल्कुल भी नार्मल नहीं है ना सुनने वाले के लिए और ना ही बोलने वाले के लिए। ✅️ तो वह कौन सी बाते हैं?? और उन बातों को कहने या सुनने का क्या तरीका होना चाहिए यह हम इन किताबों द्वारा समझ और जान सकते हैं। इसलिए इनको पढ़ना बेहद ज़रूरी है। इसको इम्प्लीमेंट करने में हमें सालों लग सकते हैं लेकिन धीरे धीरे यह बातें हमारे सबकॉन्शियस दिमाग़ में अपना घर बनाती रहेंगी और यही सबकॉन्शियस दिमाग़ इसे दैनिक जीवन में लाने में मदद भी करेगा।
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????तो आइए मेरी इस सेल्फ हेल्फ श्रेणी में आपका स्वागत है। यहाँ मैं बहुचर्चित सेल्फ हेल्प किताबों के कुछ मुख्य बिंदु और इनसे सीखी हुई अपनी समझ आपके साथ साझा करुँगी। जो लोग किन्ही कारण वश पूरी किताब पढ़ने में असमर्थ हैं उन्हें इससे कुछ हद तक अनंत मानसिक दुनिया की बातों को समझने में सहायता मिलेगी। ????
????आज की किताब: 101 essays that will change the way you think इस किताब के एक अंश में लेखिका Brianna wiest मानसिक कष्ट को हमारे द्वारा दिए जाने वाले महत्त्व पर लिखती हैं...
????️हम उन मानसिक संरचनाओं में फंसे रहते हैं जिनको हमने स्वयं बाहरी दुनिया द्वारा रची गई परिस्थितियों के निर्माण की अनुमति दी थी। जबकि हमें मालूम होना चाहिए कि हम इन्हें किसी भी समय डिसमेन्टल कर सकते हैं। हमारा दर्द हमारे अंतर्मन में चल रहे संवादों को निर्धारित नहीं कर सकता है। और हम इन अनैच्छिक विचारों की जीत होने से स्वयं को रोक सकते हैं। यदि हम उस भावना को हमारी समझ में घुसने देते हैं तो वह हमारे वर्तमान अनुभव में खुद को रूपांतरित करने लगती है। और इस तरह जो बीत चुका है उस पर हम अपने वर्तमान को प्रोजेक्ट करने लगते हैं।
????️वास्तव में दर्द का विपरीत मायना खुशी नहीं होता बल्कि उस दर्द को स्वीकार करना होता है।
????️कई बार हमारे लिए यह विश्वास करना कठिन होता है कि हम खुश रहना डिज़र्व करते हैं, और इसलिए हम लगातार दर्द को भड़काने में लगे रहते हैं। यह द्वंद्व मानवीय तौर पर स्वाभाविक है लेकिन इसकी निरंतरता बिल्कुल स्वाभाविक नहीं।
????️यदि आप असंभव चाह रखेंगे, तो आप कष्ट में होंगे। यदि आप किसी भी पीड़ा को महत्व देकर यह सोचते हैं कि घुटना और घुटते रहना आपको अधिक मानवीय बनाता है तो सोचते रहिए लेकिन वास्तविकता यह है कि जो बात हमें अधिक मानवीय बनाती है वह हमें नष्ट नहीं करती, बल्कि उसके द्वारा हम खुद को पुनः और असंख्य बार हील कर सकते हैं। To be continued...
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