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सेल्फ हेल्प/मानसिक स्वास्थ भाग 2
श्रीमद् भगवद्गीता के तीसरे अध्याय में लिखा है कि किसी दूसरे के जीवन की नक़ल को पूर्णता के साथ जीने से ज्यादा अच्छा है कि स्वयं की तक़दीर को अपूर्णता से जिया जाए।
????जहाँ एक तरफ "अलेक्सिस ज़ोरबा" कहता है कि "तंगहाल होने पर मैं संतूरी बजाकर अपने जीवन में खुशी ढूँढने की कोशिश करता हूँ।" वहीं
????"हिमिन सुनिम" जीवन के साधारण लम्हों में भी आह्लाद ढूँढने को खुशहाल जीवन का पर्याय बताते हैं- जैसे पौधों को पानी देना या अपने बच्चों के साथ बच्चा बनकर खेलना। यह सच है कि नकारात्मकता हमारे चारों ओर है। ट्रैफिक जाम से लेकर समाचार पत्र में छपने वाली या टेलीवीज़न पर दिखाई जाने वाली वह कोई भी खबर आपका पूरा दिन नकारात्मक ऊर्जा से भर देने के लिए पर्याप्त होती है। हम सब अपने अवचेतन मन में कहीं न कहीं यह समझते हैं कि सुबह की शुरुआत नकारात्मक हुई तो पूरा दिन नकारात्मक होने लगता है। और फिर हम जाने अनजाने इसे अपने अंदर जज़्ब कर दूसरों पर खर्च करना भी शुरू कर देते हैं। ????एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं...
???? जब हम खुश होते हैं तब अपने आस पास मित्र रिश्तेदारों से अपनी खुशियाँ बांटते हैं ठीक उसी प्रकार दुःख या नकारात्मक भाव भी हम बांटते हैं। लेकिन इसका संचार सुख से ज्यादा मात्रा में होता है। इससे जाने अनजाने हम नकारात्मकता का संचार माध्यम बनने लगते हैं। और यह क्रिया तब तक गतिशील रहती है जब तक इसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिलता जिसमें अप्रभावित रहने का गुण विद्यमान हो। अब यह गुण हम स्वयं में कैसे ढालें??
???? "डॉक्टर जोसफ़ मर्फ़ी" अपनी पुस्तक "आपके अवचेतन मन की शक्ति" में लिखते हैं कि "गलत विचार आपकी जीने की इच्छा को भी खत्म करने की क्षमता रखते हैं लेकिन जब आप यह समझ लेते हैं कि आपको इन्हें स्वीकार करने की ज़रूरत नहीं है तो आपके सामने विकल्प खुल जाते हैं। अपने अवचेतन मन को सृजनात्मक आत्म सुझाव देकर आपमें इन सभी विध्वंसात्मक विचारों का विरोध करने की शक्ति आने लगती है।"
वहीं ????गीता के पाँचवे अध्याय में लिखा है - जो व्यक्ति अपने कर्मफल परमेश्वर को समर्पित कर आसक्ति रहित होकर कर्म करता है वह पाप कर्मों और समस्त नकारात्मकताओं से अप्रभावित रहता है। और "वेक्स किंग" कहते हैं कि हम अपने सभी दुखों के कारण और निवारण स्वयं हैं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कैसे?? ????उदाहरण के तौर पर: आपने सोशल मीडिया पर किसी ऐसे व्यक्ति कि पोस्ट देखी जो अपनी खुशी आप सब से बाँट रहा है। उसने अपने परिवार या प्रेमी/प्रेमिका के साथ तस्वीर डाली है और अपनी खुशी शब्दों में व्यक्त की है लेकिन आप किसी कारण से उस पल दुःखी हैं और ठीक उस समय वह पोस्ट देख कर आपके मन में ईर्ष्या, दुःख या नकारात्मकता का संचार होता है। (कुछ लोगों से बातचीत के आधार पर)
अब वह व्यक्ति यह संचार एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे व्यक्ति में करता रहेगा और स्वयं की नकारात्मकता को भी बढ़ाएगा। तो सवाल यह है कि इस प्रभाव से कैसे बचें? और जवाब है स्वयं पर नियंत्रण करने से... लेकिन क्या यह आसान है?? मान लीजिए आपके पास कोई ऐसा जार या कंटेनर है जिसमें सामान किसी नलके से बाहर निकलता है जैसे कि चावल। अब सबसे पहले आपने उसमें तिन्नी के चावल डाले फिर ब्राउन राइस डाला और अन्त में बासमती। इसलिए बासमती चावल आपको सबसे ऊपर दिख रहा है लेकिन नलका खोलने पर सबसे पहले तिन्नी का चावल निकलता है। ठीक उसी समय किसी और को बासमती चावल प्राप्त होते हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि वह व्यक्ति अपने सारे पिछले कर्मों का वहन कर चुका है इसलिए अब उसे बासमती अर्थात सुख लाभ मिलने लगा है। तो यदि आप अपने आज से उस व्यक्ति के आज की तुलना करेंगे तो सदैव दुःखी रहेंगे। लेकिन ठीक इस पल से अपने जीवन को खुशहाल बनाने के लिए कर्म करना शुरू करेंगे तो दुःख के पलों में भी चहरे पर मुस्कान सदैव बनी रहेगी।
मैंने अक्सर लोगों को एक दूसरे को पोस्ट पर लिखते हुए देखा तथा कहते हुए सुना है कि फलाने तुम कितने "लकी" हो जो तुमको फलानी वस्तु या सुख प्राप्त हुआ। तो क्या सच में वह व्यक्ति इतना लकी है कि बैठे बैठे उसे उसकी मनचाही वस्तु मिल गई?? या यह उसके कर्मों का फल है?? एक बार विचार अवश्य कीजिए।
और ???? लोगों से अपनी तुलना करना बंद कर दीजिए।
????जितनी ज्यादा हो सके किताबें पढ़िए यह हमारी सच्ची मित्र हैं। और हमसे बिन कुछ लिए हमें वह ज्ञान और सकारात्मकता देती हैं जिस ज्ञान की हमें आवश्यकता है।
????जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके सकारात्मक रहने की कोशिश कीजिए और नकारात्मक बातों को देख कर अनदेखा और सुन कर अनसुना करने की कोशिश कीजिए।
????सबसे ज़रूरी बात सम्पूर्ण होना जीवन का उद्देश्य नहीं है। न स्वयं सम्पूर्ण बनने की कोशिश कीजिए और न ही दूसरों को सम्पूर्ण होने की टिप दीजिए। आप और वह जैसे हैं, जो हैं अच्छे हैं।
???? किताब "वाबी साबि" में अपूर्णता के जादू का उल्लेख है। हो सके तो उसे पढ़िए और समझिए कि सम्पूर्ण होना भ्रम से ज्यादा कुछ भी नहीं है। हम सारा जीवन लगा दें तब भी परफेक्ट कभी नहीं हो पाएंगे।
????दूसरों कि खुशी में यदि खुश मत होइए तो अपने दुःख के लिए किसी और को ज़िम्मेदार भी मत ठहराइए। और स्वयं दुःखी हैं तो यह मत सोचिए कि आपके साथ सारी दुनिया को दुःखी होना ज़रूरी है।
???? यदि किसी को वो मिल गया है जिसे आप हासिल करना चाहते थे तो मन को सुदृढ़ कर उससे उसकी जीत का फलसफ़ा पूछिए। फिर उस पर चलने की कोशिश कीजिए। उसको देख कर उदास या दुःखी न होइए। आप वह व्यक्ति कभी नहीं बन सकते। एक बार गौर से खुद को भी देखिए। हो सकता है जिस पल को आप दुःखी होने में व्यतीत कर रहे हैं ठीक उस पल में आप अपनी खुशियों की राह में एक कदम आगे बढ़ना भूल रहे हों... है ना??
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