अमान्य विवाह से पैदा बच्चे जायज़, माता-पिता की संपत्ति में हक़दार: सुप्रीम कोर्ट
शीर्ष अदालत का फैसला 2011 की उस याचिका पर आया था, जिसमें सवाल उठाया गया था कि क्या हिंदू क़ानूनों के तहत बिना विवाह के हुए बच्चे अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्से के हकदार हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘अमान्य या अमान्य करार दिए जा सकने’ वाले विवाह से पैदा हुए बच्चे जायज़ हैं. अदालत ने जोड़ा की हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत ऐसी संतानें माता-पिता की संपत्तियों में अधिकार का दावा कर सकते हैं.
हिंदू कानून के अनुसार, अमान्य विवाह में पुरुष और महिला को पति और पत्नी का दर्जा नहीं मिलता है. हालांकि, अमान्य करार दिए जा सकने वाले विवाह में उन्हें पति और पत्नी का दर्जा मिला होता है. अमान्य विवाह में, शादी रद्द करने के लिए किसी आदेश की जरूरत नहीं होती है, जबकि अमान्य करार दिए जा सकने वाले विवाह में इसे रद्द करने का आदेश चाहिए होता है.
शीर्ष अदालत का फैसला 2011 की उस याचिका पर आया था, जो इस जटिल कानूनी मुद्दे से संबंधित थी कि क्या हिंदू कानूनों के तहत बिना विवाह के हुए बच्चे अपने माता-पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्से के हकदार हैं.
इसे लेकर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘हमने अब निष्कर्ष निकाल लिया है, 1. एक विवाह जो अमान्य है, उससे होने वाले बच्चे को कानूनन वैधता दी जाती है, 2. 16(2) (हिंदू विवाह अधिनियम के) के संदर्भ में, जहां एक अमान्य विवाह को रद्द कर दिया जाता है, उससे पहले पैदा हुए बच्चे को वैध माना जाता है.
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 (3) के तहत ऐसे बच्चों का हिस्सा केवल उनके माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति तक ही सीमित है.
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