निर्मल वर्मा ( साहित्यकार)
मैं निर्मल वर्मा की शैली में गद्य लिखने वालों में एक आश्चर्यजनक साम्य पाता हूँ कि ज़्यादातर उनकी कहानियों की नक़ल करते हुए मिलते हैं लेकिन उनके वैचारिकता लिए हुए निबन्धों की नक़ल कोई नहीं करता ।
निर्मल वर्मा की लेखन-शैली की नक़ल करने वाली कुछेक स्त्रियों को देखता हूँ तो कभी-कभी हँसी आती है कि उनके लेखन में किस तरह उन्होंने स्वयं को अवसाद में डूबी और पहचान के संकट से जूझती हुई नितान्त अकेली स्त्री घोषित कर रखा है जबकि उनके निजी जीवन में उन्हें सब-कुछ मिला हुआ जिनसे बहुत-सी स्त्रियाँ वंचित हैं ।
निर्मल की लेखन-शैली का अनुकरण वाले कुछ पुरुषों को देखता हूँ तो उसमें इतनी बनावटी भाषा और वायवीय बिम्बों की भरमार दिखती है कि उनका लिखा इस दुनिया से जुड़ा हुआ दिखता ही नहीं ।
हरेक को अपना एक अलग रास्ता चुनना चाहिए । यह बहुत मुमकिन बात है कि हम पर अपनी पसन्द के लेखक का असर होता है लेकिन उस असर से मुक्त होना भी आना ही चाहिए ।
मुझे उन लेखकों से कोफ़्त है जिन्होंने कुछ लेखकों के दुःखों, चिंताओं और परिप्रेक्ष्यों को बिन सोचे-समझे अपने लेखन में जगह दी ; बजाय अपने जीवन की, भावों की और अनुभवों की गहन पड़ताल के । मुझे इस बात पर सख़्त एतराज़ है कि लेखन में चमकीली पंक्तियों से पाठक को चमत्कृत करने की कोशिशें करते रहना ।
यह बात ख़ारिज नहीं की जा सकती कि कला चमत्कृत भी करती है किन्तु चमत्कृत ही नहीं करती । निर्मल वर्मा के लिखे में जादू था लेकिन यह उनका जादू था और हर लेखक को उसका जादू ख़ुद ही ढूँढना होगा ।
निर्मल वर्मा की शैली में लिखने वाले निर्मल वर्मा को सबसे बेहतर श्रद्धांजलि या स्मृति-नमन उनकी तरह लिखकर नहीं दे सकते ; अपनी ही तरह लिखकर दे सकते हैं । अगर आप किसी की तरह हैं तो यह उसके लिए नहीं आपके लिए दुर्भाग्य की बात है ।
मुझे अक्सर लगता है कि लेखन करने से पहले ख़ुद के पास देर तक बैठना चाहिए और अपने मन पर लिखी दूसरों की तहरीरों को जितना हो सके मिटा ही देना चाहिए ।
क्योंकि, हरेक को अपना रास्ता चुनना आना ही चाहिए ।
है न ?
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