कविता
प्रेम यदि है प्रेम तो वह ' यह प्रेम है ' कैसे कहेगा?
मन की अजानी वर्णमाला किस तरह समझा सकेगा?
क्या ये कहे कि तट हो तुम जिससे बंधी है नाव मेरी
या कि जहां रह सकूं प्रमुदित तुम वही हो ठांव मेरी
तुम जग के तपते, सुलगते पथ पे बनी हो छांव मेरी
मगर फिर भी बहुत कुछ कहना सदा बाकी रहेगा..
तुम आस का काजल हो, प्रिय!
स्पष्ट करती हो दृष्टि को हो
विधि का अनुपम सृजन सफल करती हो तुम
सृष्टि को कभी मंत्र कोई स्वाहा,
स्वधा का, आहूत करती वृष्टि को
हर बार लगती तुम नई,
रिक्त मेरा कोष अब कौनसी उपमा चुनेगा?
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?