एक नज़र इधर भी
कॉमरेड चंदू को याद कीजिये, लालू जी का असली चेहरा दिख जाएगा।
शहाबुद्दीन की राजनीति अगर अच्छी लग रही है, तो आपको हिटलर भी शानदार लगता होगा
और 2002 से भी आपको कोई आपत्ति नहीं ही होगी न?
अगर चारा घोटाला ठीक है
तो कोल-गेट भी ठीक ही होगा?
लाइन तय कीजिये साथी,
सबकी मिश्री-सबका मक्खन नहीं हो सकता न।
आपकी प्रतिक्रिया क्या है?