रिटायर IPS अफसर ने बताया अतीक अहमद की क्रूरता के किस्से

अतीक अहमद अपने खौफ को कायम रखने के लिए हत्या की वारदातों को अंजाम देता था। अपने गैंग में शामिल होने वाले गुर्गों को उसकी कड़ी ट्रेनिंग से होकर गुजरना पड़ता था। मर्डर इसका हिस्सा होते थे।

अप्रैल 20, 2023 - 20:08
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रिटायर IPS अफसर ने बताया अतीक अहमद की क्रूरता के किस्से

गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद की हत्या के बाद कई प्रकार की चर्चा शुरू हो गई है। कोई उसे रॉबिनहुड बता रहा है। कोई अतीक को गरीबों को आर्थिक मदद करने वाला। लेकिन, इस गैंगस्टर की खौफ के किस्से ऐसे हैं जो आपको कंपा देंगे। गैंग में शामिल होने वाले गुर्गों को वह जंगल में शिकारियों की तरह शिकार करना सिखाता था।

वर्ष 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के बाद अतीक ने अपने गैंग में युवाओं की भर्ती करना शुरू कर दिया। उसने युवाओं को पशु प्रवृति देनी शुरू की। रिटायर्ड आईपीएस लालजी शुक्ला अतीक के खौफ की कहानी कहते हैं। वे कहते हैं कि 24 फरवरी को सुलेमसराय में जीटी रोड पर हुई वकील उमेश पाल की हत्या को भी आप अतीक के नौसिखियों के लिए लाइव ड्रिल के रूप में देखा गया। इस हत्याकांड में अतीक का तीसरा बेटा असद अहमद शूटरों को लीड करता दिखा था।

रिटायर्ड आईपीएस ने कहा कि अतीक को डर था कि कोर्ट में उमेश पाल के बयान राजू पाल हत्याकांड में उसकी सजा का कारण बनेंगे। चूंकि उसके दोनों बड़े बेटे जेल में थे, इसलिए उसने इस हमले का इस्तेमाल अपने तीसरे बेटे असद को लॉन्च करने के लिए किया। यह एक लाइव वर्कशॉप के रूप में भी देखा जा सकता है। इसी तरह, 1996 और 2001 में प्रयागराज में गैंगस्टर को गिरफ्तार करने वाले लालजी शुक्ला कहते हैं कि राजू पाल ने अतीक के घरेलू मैदान पर उसके भाई को चुनाव में हराकर उसे चुनौती दे दी थी। इस हत्याकांड के बाद चीजें कभी अतीक के अनुकूल नहीं रहीं। ऐसे में अतीक इस इलाके के अपराध की दुनिया में अपनी पकड़ को मजबूत बनाना चाहता था। इसके लिए उसने युवाओं का प्रयोग किया।

लालजी शुक्ला ने कहा कि असद और उससे पहले अशरफ ने आपराधिक घटनाओं के दौरान अपना चेहरा नहीं ढंका था या अपनी पहचान नहीं छिपाई थी। इसका कारण वे गिरोह में और अपने प्रतिद्वंद्वियों के बीच अपनी स्थिति स्थापित करना था। रिटायर्ड आईपीएस कहते हैं कि अतीक का अपराधिक ग्राफ 1979 में उसकी पहली हत्या के बाद से बढ़ता रहा। राजनीति में आने का कारण भी स्पष्ट था। वह जबरन वसूली और आपराधिक गतिविधियों के माध्यम से जमा किए गए पैसों को संरक्षित करना चाहता था। इसके लिए उसने 1989 में राजनीति में प्रवेश किया और विधायक के रूप में अपनी पहली जीत का स्वाद चखा। इसके बाद वह एक ही सीट से चार बार जीता और एक बार सांसद बने।

लालजी शुक्ला ने कहा कि अतीक को पैसे का इतना लालच था कि उसने रातों-रात शहर की कई संपत्तियों पर कब्जा कर लिया था। लालजी शुक्ला ने अतीक को 1996 में एक व्यापारी अशोक साहू की हत्या के बाद पहली बार अतीक को गिरफ्तार किया था। उन्होंने अतीक को 1994 में पार्षद अशफाक उर्फ कुन्नू की हत्या के आरोप में 15 फरवरी 2001 को एक बार फिर गिरफ्तार किया गया था। पार्षद कुन्नू अतीक के लिए काम करता था, लेकिन बाद में उसके खिलाफ हो गया। इसके बाद अतीक ने सरेआम उसकी हत्या करा दी थी।

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