क्या बिहार को मिलेगा विशेष राज्य का दर्जा, पूरी होगी CM नीतीश कुमार की मुराद?
क्या बिहार को मिलेगा विशेष राज्य का दर्जा, पूरी होगी CM नीतीश कुमार की मुराद?
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बिहार के विशेष राज्य के दर्जे की मांग करीब दो दशक पुरानी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शिकायत है कि केंद्र में सत्ता चाहे यूपीए की रही हो या एनडीए की, उनकी मांग पर कभी गौर नहीं किया गया. बिहार की पूरी जनता और राजनीति नीतीश की इस मांग के साथ है. यही वजह है कि तेजस्वी यादव ने तंज कसा कि बिहार अगर किंगमेकर है तो नीतीश कुमार को विशेष राज्य का दर्जा जरूर मांगना चाहिए.
बिहार में अगला विधानसभा चुनाव होने में अभी करीब डेढ़ साल बाकी है लेकिन इसकी बिसात लोकसभा चुनाव से भी पहले ही बिछने लगी थी. बिहार में सभी 40 सीटों पर एनडीए का कब्जा तो नहीं हो सका लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए अबकी बार 200 पार का नारा बुलंद होने लगा. नीतीश कुमार ने जैसे ही एनडीए का दामन थामा कयासबाजी से शुरू हो गई कि अब अगली डील बिहार को विशेष राज्य के दर्जा के मुद्दे पर होगी. इस बीच केंद्र में नई सरकार का गठन हो गया और मौका केंद्रीय बजट का है तो सवाल है क्या अब वो समय आ गया कि बिहार के लिए दिल्ली से कुछ बड़ा ऑर्डर होने वाला है? क्या बिहार को अब विशेष राज्य का दर्जा मिल जाएगा? जैसी कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सालों पुरानी ख्वाहिश और मांग है. यकीनन ऐसा होता है कि नीतीश कुमार बिहार के इतिहास की अविस्मरणीय शख्सियत बन जाएंगे.
विशेष राज्य का दर्जा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स का पुराना आधार रहा है. करीब दो दशक से इसके लिए वो आवाज उठाते रहे हैं. लेकिन उनकी मुराद पूरी नहीं हो सकी. वैसे नीतीश इस बात को भली भांति समझते हैं कि उनकी यह मांग अभी नहीं तो आगे कभी पूरी होगी, इसकी संभावना क्षीण है. लिहाजा उन्हें और पूरे बिहार की जनता तो इस बार हर बार से ज्यादा उम्मीद है. क्योंकि साल 2000 में जब झारखंड अलग राज्य बना तभी से बिहार केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत पर ही गौरव करने लिए बच गया था. बिहार की आर्थिक समृद्धि का आधार उससे छिन गया था. लेकिन यह राजनीतिक मजबूरी थी. पिछड़ेपन, गरीबी और बाढ़ की विभीषिका के चलते राज्य से पलायन एक बार फिर बढ़ने लगा.
कब-कब उठाई विशेष राज्य के दर्जे की मांग?
बिहार में साल 2000 के बाद का ये वो दौर था जब आरजेडी और लालू प्रसाद यादव के मुकाबले राज्य की बड़ी आबादी नीतीश कुमार की राजनीति को पसंद करती थी. उनके विजन में भविष्य के बिहार की नई उम्मीद दिखती थी. तभी नीतीश कुमार ने सुशासन और समृद्धि का नारा दिया. इस लिहाज से 2005 का विधानसभा चुनाव सबसे क्रांतिकारी चुनाव माना जा सकता है. बिहार चुनाव के पर्यवेक्षक केजे राव ने तब राज्य की चुनावी तस्वीर बदल दी. उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल करवाया तो बूथ-बूथ पर रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती करवाई. उन्होंने पगडंडियों पर मोटरसाइकिल से सफर करके गांव-गांव के बूथों का जायजा लिया और वोटिंग के दौरान सुरक्षा व्यवस्थित की. नतीजा- बिहार में सत्ता परिवर्तन. लालू प्रसाद यादव गए और नीतीश कुमार की सत्ता आ गई.
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