जातीय जनगणना पर कोर्ट ने नीतीश को फटकारा
बिहार में जातीय जनगणना पर कोर्ट ने अर्धविराम लगा दिया है। नीतीश कुमार की सियासी प्लानिंग को तगड़ा झटका लगा है। जाति जनगणना को सियासी जानकार टैक्स के पैसे का दुरुपयोग बता रहे हैं।
जैसा अनुमान लगाया जा रहा था कि जातीय जनगणना करने पर उतारू बिहार की नीतीश नीत सरकार को उच्च न्यायालय से झटका लगने वाला है और वैसा ही हुआ। गुरुवार को पटना हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए जातीय जनगणना पर फिलहाल रोक लगा दिया। कोर्ट ने सर्वे के दौरान प्राप्त डाटा को संरक्षित रखने का भी आदेश दिया है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 3 जुलाई को होगी। कोर्ट के फैसले के बाद बिहार में सियासत शुरू हो गई है। बीजेपी सरकार के इस फैसले पर सवाल खड़े करने में जुटी है। वहीं कोर्ट के रोक के बाद कुछ और सवाल सियासी फिजां में तैरने लगे हैं।
पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी. चंद्रन की खंडपीठ ने अपने अंतरिम फैसले में तत्काल प्रभाव से इस पर रोक लगाते यह निर्देश भी दिया कि जातीय गणना को लेकर अब तक जो डाटा कलेक्ट किया गया है उसे सुरक्षित रखा जाए। उच्च न्यायालय ने साफ कहा कि जनगणना करना केंद्र सरकार के कार्यक्षेत्र में नहीं आता है। बाबजूद जनगणना कराना संविधान का उल्लघंन है। साथ ही न्यायालय ने कुछ सवाल भी उठाए। मसलन इस गणना का उद्देश्य क्या है? क्या इसे लेकर कोई कानून भी बनाया गया है?
इस मामले में महाधिवक्ता पीके शाही ने उच्च न्यायालय को राज्य सरकार द्वारा कराए गए सर्वे की जानकारी देते बताया कि राज्य सरकार जन कल्याण की योजनाओं को बेहतर ढंग से क्रियान्वन के लिए सर्वे करा रही है। इस गणना के बाद पिछड़े व दलित लोगों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलेगा। इसलिए सर्वे के निर्णय करने से पहले बिहार विधानसभा और विधान परिषद के पटल पर पूरे प्रस्ताव को रखा गया। और प्रस्ताव पारित होने के बाद ही सर्वे कराने का निर्णय लिया गया है।
उच्च न्यायालय ने साफ कहा कि जनगणना कराना आपका काम नही है। यह केंद्र सरकार का संवैधानिक अधिकार है। इस जनगणना पर होने वाले खर्च पर भी सवाल उठाया। उच्च न्यायालय ने जनगणना पर होने वाले खर्च पर भी सवाल उठाया कि जनता के दिए टैक्स से इस मद में 500 करोड़ खर्च करना सर्वथा अनुचित है। जातीय जनगणना को लेकर उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि पिता के आधार पर जाति की पहचान की प्रक्रिया भी सही नहीं।
जनगणना के बहाने कई अन्य जानकारियां भी ली जा रही हैं जिससे निजता पर खतरा भी है। रही जाति की जानकारी तो ये आंकड़े स्कूल में भी है। इसके साथ बीपीएल, एबीपीएल कार्ड में भी जातीय जानकारी है। फिर क्यों जनगणना। बहरहाल, जातीय आवरण में राजनीति के इस खास पल में वर्तमान सरकार खुद सवालों के कठघरे में है। लेकिन कोर्ट के इस रोक से परोक्ष रूप से राज्य में महागठबंधन को तो झटका लगा है परंतु भाजपा की भारतीयता को एक बल जरूर मिला है।
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