विराट कोहली ने नाक कटवा दी

विराट कोहली अपने खेल से महान हैं। उनकी बैटिंग में सचिन वाली छवि दिखती है। इससे शायद ही कोई इनकार करे, लेकिन जब बात मैदान पर किए गए बर्ताव और सम्मान की आती है तो सचिन का कद कहीं अधिक विशाल हैं। वह कोहली की तरह मैदान पर ड्रामा नहीं करते थे।

मई 6, 2023 - 12:42
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क्रिकेट हमारा जुनून है और सचिन इसके भगवान हैं। क्रिकेट का भगवान उनके रहते पुनर्जन्म लेगा, इसकी आस हम सबको थी। और सचिन के पिच पर रहते इसकी झलक दिखने लगी। विराट कोहली ने अंडर 19 वर्ल्ड कप में ही छाप छोड़ दी थी। लेकिन 18 अगस्त 2008 के दिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण के बाद कोहली मैदान पर विराट रूप धारण करते गए। आज शतकों के शतकवीर सचिन के रिकॉर्ड के पास मंडरा रहे हैं विराट कोहली।

सचिन 24 साल तक देश के लिए खेले। जब वो 1987 में आए तो 16 साल के थे और क्रिकेट को अलविदा कहा तो 40 साल के थे। सचिन हमें हर शॉट पर झुमाते रहे। आज कोहली क्रिकेट के भगवान का रिकॉर्ड तोड़ने के आस-पास हैं। 15 साल तो वो भी मैदान पर बिता चुके। सचिन का रिकॉर्ड टूट भी जाए लेकिन ये शख्स क्या सचिन की परछाई के बराबर भी हो सकता है?

मैदान पर दिल जीतो। देश के लिए खेलो तो जान लगा दो। सचिन की तरह बैटिंग के मामले में विराट में वो सब कुछ है। दुनिया के दिग्गज बोलर उनसे खौफ खाते हैं। लेकिन क्रिकेट सिर्फ शॉट मारने तक सीमित नहीं है। सफल होने के लिए संयम जरूरी है। धैर्य जरूरी है। एकाग्रता की जरूरत है। जैसे बोलर के पीछे वाली स्क्रीन के आस-पास भी कोई दिखता है तो बैट्समैन पीछे हट जाता है, वैसे ही हर किसी भटकाव से दूर रहना जरूरी है। जब आप ऐसा करते हैं तो रेस्पेक्ट पाते हैं। आदर करना और सम्मान पाना किसी सेंचुरी की मोहताज नहीं है। लेकिन सेंचुरी के साथ सम्मान भी मिले तो बनता है सचिन तेंदुलकर।

मैदान के भीतर भी और बाहर भी। वकार ने पहले मैच में नाक तोड़ दी, फैनी डिविलियर्स ने परेशान किया। उस छोटे से बच्चे को ऑस्ट्रेलिया में स्लेजिंग भी झेलना पड़ी, लेकिन सचिन हमेशा मुंह मोड़ लेते। आपने देखा होगा। मैकग्रा हों या शोएब अख्तर या ब्रेट ली.. बल्ला चला और नहीं लगा तो ये बोलर आगे बढ़ते, सचिन को घूरते और सचिन क्या करते। लेग स्लिप या स्क्वेयर लेग की तरफ टहलने निकल पड़ते। उलझना उनकी फितरत में ही नहीं रहा। जीत और हार में सम्यक भाव। सचिन टीम की हार पर रोते भी और जश्न भी मनाते। लेकिन विराट जैसी नौटंकी मैदान पर नहीं करते।

आज भी सचिन मैदान पर हैं। हां रोल बदला हुआ है। एक वीडियो देख रहा था। किसी आईपीएल मैच के बाद मुंबई इंडियंस के खिलाड़ी और सपोर्ट स्टाफ दूसरी टीम से हाथ मिलाते हैं। जब जोंटी रोड्स की बारी आती है तो वो सचिन का पैर छूने के लिए झुकते हैं। सचिन वही सबको खुश करने वाले अंदाज में मुस्कुराते हैं और उन्हें रोकते हैं। एक और तस्वीर देख रहा था। विराट का एक फैन जो उनसे उम्र में कहीं बड़ा था। वो पैर छूता है। और भीष्म की तरह विराट कोहली उसकी पीठ पर हाथ रख उसे आशीर्वाद देते हैं। ये फर्क है सचिन और विराट का। विराट का अहंकार उनके खेल पर हावी है। सचिन ने एक से बढ़कर एक जीत दिलाई। वो दौर भी याद है जब सचिन ही जीत की इकलौती आस होते। और तब टीम इंडिया जीतती तो भी सचिन उतने ही शांत। कभी अहंकार को हावी नहीं होने दिया।

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