राजस्थान पर जल्द हो फैसला क्योंकि अशोक गहलोत से तल्खी के बीच बोले सचिन पायलट
पायलट ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उच्च न्यायालय में दायर हलफनामे में इसका उल्लेख किया गया है कि 81 विधायकों के इस्तीफे मिले और कुछ ने व्यक्तिगत तौर पर इस्तीफे सौंपे थे. उनके अनुसार, हलफनामे में यह भी कहा गया कि कुछ विधायकों के इस्तीफे फोटोकॉपी थे और शेष को स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि ‘‘वे अपनी मर्जी'' से नहीं दिए गए थे.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट (Sachin Pilot)ने बुधवार को कहा कि पिछले साल जयपुर में पार्टी विधायक दल (CLP) की बैठक में भाग नहीं लेकर तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के निर्देश की ‘‘अहवेलना करने वाले'' नेताओं के खिलाफ कार्रवाई में ‘‘अत्यधिक विलंब'' हो रहा है. अगर राज्य में हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा बदलनी है तो राजस्थान में कांग्रेस से जुड़े मामलों पर जल्द फैसला करना होगा. क्योंकि अनुशासन और पार्टी के रुख का अनुपालन सभी के लिए समान है, व्यक्ति बड़ा हो या छोटा.
सचिन पायलट ने बुधवार (15 फरवरी) को पीटीआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि अनुशासनात्मक समिति तत्कालीन पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी के खिलाफ खुली अवहेलना के संबंध में निर्णय में विलंब का सबसे अच्छा जवाब दे सकते हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले तीन नेताओं को चार महीने पहले दिए गए कारण बताओ नोटिस का हवाला देते हुए कहा कि कांग्रेस की अनुशासनात्मक कार्रवाई समिति, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस नेतृत्व ही इसका सही जवाब दे सकते हैं कि मामले में निर्णय लेने में ‘‘अप्रत्याशित विलंब'' क्यों हो रहा है.
पायलट ने ‘पीटीआई-भाषा' को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘‘विधायक दल की बैठक 25 सितंबर को मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई थी. यह बैठक नहीं हो सकी. बैठक में जो भी होता वो अलग मुद्दा था, लेकिन बैठक ही नहीं होने दी गई.'' उन्होंने कहा कि जो लोग बैठक नहीं होने देने और समानांतर बैठक बुलाने के लिए जिम्मेदार थे उन्हें ‘‘प्रथम दृष्टया अनुशासनहीनता'' के लिए नोटिस दिए गए थे.
पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मुझे मीडिया के माध्यम से यह जानकारी मिली कि इन नेताओं ने नोटिस के जवाब दे दिए. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की तरफ से अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है. मुझे लगता है कि एके एंटनी के नेतृत्व वाली अनुशासनात्मक कार्रवाई समिति, कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी नेतृत्व ही इसका सही जवाब दे सकते हैं कि निर्णय लेने में इतना ज्यादा विलंब क्यों हो रहा है.''
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