चलचित्र
एक फ़िल्म आई थी 1983 में गोविंद निहलानी साहब की .. नाम था "अर्ध सत्य" ..
मेरी उम्र तब सिर्फ 9 साल की थी .. तब कुछ नहीं समझ आया था ..जब उम्र 18 साल की हुई तब दोबारा देखा इस मूवी को दूरदर्शन पर ... तबतक गोविंद निहलानी साहब की ढुरदर्शन पर उनकी बहुचर्चित सीरियल '"तमस" देखकर उनके बारे में बहुत से ख्याल और विचार तय हो चुके थे बालक मन मे ..
ओम पुरी साहब की एक्टिंग से इतने प्रभावित हुए थे इस फ़िल्म से की ताजिंदगी उनकी बहुत सारी बकवास फिल्में झेलते रहने की ताकत इसी एक फ़िल्म से मिली ...
एक वक्त ऐसा भी आया की ओम पुरी से नफरत हो चली थी जो उनके मरते दम तक बनी रही .. लेकिन फिर भी एक बात कहूंगा कि ये सारे वामपंथी फिल्मी कलाकार अपनी जाति जिंदगी में चाहे जितने भी बेगैरत हों लेकिन इन्होंने ही फिल्मी पर्दे पर सबसे नायाब अभिनय किया है जिसे हम भूलना भी चाहें तो नही भूल सकते .. सिस्टम के करप्शन से लड़ता हुआ एक पुलिस अफसर कैसे कैसे दौर से गुजरता है उस कठिन पीड़ा और दर्द को जिस तरह से ओम पुरी साहब ने इस फ़िल्म में दर्शाया है वो काबिले तारीफ है ..
. ओम पुरी साहब के ऐसे अप्रतिम और अद्वितीय अभिनय के लिये 100 ऑस्कर भी कुर्बान कर दिए जाएं तो कम है ... मुझे आज भी याद है अमिताभ बच्चन साहब के वो शब्द जो उन्होंने मनोज वाजपेयी की "शूल" देखने के बाद कही थी .. की अगर इस फ़िल्म में मैं भी होता तो मनोज जैसा अभिनय नही कर पाता ...
लेकिन जिसने भी अर्ध सत्य देखी है वह यही कहेगा कि अमिताभ बच्चन साहब ने शायद ओम पुरी के अर्ध सत्य वाले रोल को ठीक से नही देखा ... अमिताभ बच्चन ने भी "खाकी" मूवी में एक पुलीसवाले का बेहतरीन किरदार निभाया था जो मुझे बहुत पसंद है ...
लेकिन ओम पुरी के इस रोल को अगर आप सबने अब तक नही देखा है तो आपने कुछ नही देखा है 1983 में आई "अर्ध सत्य" को बेस्ट हिंदी फीचर फ़िल्म का नेशनल अवार्ड भी मिला था.. एक बार देखिएगा जरूर .. झकझोर कर रख देगी ये फ़िल्म आपको कसम से
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