फ़ेसबुक पर न्यूज
फ़ेसबुक पर अब नाममात्र का न्यूज़...
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बहुत समय से यह देखा जा रहा था कि फ़ेसबुक पर समाचारों/लेखों आदि के लिंक कम दिखते हैं. इसमें यह भी जोड़ लिया जाए कि समसामयिक घटनाओं पर मुखर लोग शिकायत करते रहे हैं कि उनका पोस्ट या लिंक की रीच कम हो गयी है.
एक हालिया लेख से इस संबंध में पता चलता है. इसकी सबसे अहम बात यह है कि यह फ़ेसबुक की आधिकारिक नीति के कारण हो रहा है, जिसके तहत वह न्यूज़ से दूर होता जा रहा है. इस लेख की फ़ंडिंग मेटा/फ़ेसबुक ने की है. फ़ेसबुक यूज़र अपने फ़ीड में जो कंटेंट देखते हैं, उसमें 3% से भी कम न्यूज़ का है. यह जून-अगस्त 2022 का डाटा है.
साल 2018 में फ़ेसबुक ने बताया था कि यह आँकड़ा 4% के आसपास है. यह पूरी दुनिया का आँकड़ा है. अक्टूबर-नवम्बर, 2022 में अमेरिका में 7.5% पोस्ट में ही न्यूज़ या किसी और चीज़ का लिंक था. यह तेज़ी से घटता जा रहा है. इसका मतलब यह हुआ कि अब फ़ेसबुक पर किसी तरह का लिंक डालने का कोई मतलब नहीं है. ख़बरों/लेखों आदि के जो लिंक लोगों को दिखे, उनमें से 90% से अधिक लिंक पब्लिशरों ने पोस्ट किये थे, न कि फ़ेसबुक यूज़र ने.
इसका मतलब यह हुआ कि कोई पसंदीदा लिंक पोस्ट करने या शेयर करने का कोई फ़ायदा नहीं है. इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि पब्लिशरों को फ़ेसबुक रेफ़रल से अपने रेवेन्यू का केवल एक-डेढ़ फ़ीसदी ही मिला. ऑस्ट्रेलिया में क़ानून बन चुका है कि अगर कोई प्लेटफ़ॉर्म कोई लिंक को एंकर करता है, तो उसे पब्लिशर को पैसा देना होगा.
ब्रिटेन और कनाडा में ऐसे क़ानून प्रस्तावित हैं. प्लेटफ़ॉर्म कहते हैं कि हम तो पब्लिशर को ट्रैफ़िक देते हैं. इस बैकग्राउंड में यह रिपोर्ट आयी है. यह पढ़ते हुए फिर मेरे ध्यान में आया कि क्यों हर चीज़ सब्सक्रिप्शन मोड में जा रही हैं. उन बातों को क्या दोहराना, पर यह कहना चाहिए कि सरकारें अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए टूट पड़ी हैं. कोई प्लेटफ़ॉर्म कई तरह के प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ा होता है. इनको भी एक-दूसरे से लेना होता है.
इसका एक ताज़ा उदाहरण ट्विटर सब्सक्रिप्शन है. ट्विटर ने वेबसाइट से सब्सक्रिप्शन की दर इसलिए कम रखा है कि उसे गूगल या एप्पल को कमीशन नहीं देना पड़ता है, जो एप्प पर लगता है. ट्विटर ने बिज़नेस अकाउंट, जिसमें न्यूज़ भी शामिल है, का भाड़ा बहुत अधिक रखा है क्योंकि उसके लिए पैसा देना पड़ेगा. सरकारी रेवेन्यू, अपना रेवेन्यू आदि के आयाम तो हैं ही.
बहरहाल, फ़ेसबुक की नीति से ट्विटर, यूट्यूब, रम्बल आदि को सीधा फ़ायदा होने का अनुमान लगाया जा सकता है.
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