मोदी ने बाइडेन को दिया घी
70 साल पहले अमेरिका में 1 लाख टन मक्खन जमा हुआ तो घी बनाकर भारत को बेचा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के इन्विटेशन पर बुधवार को प्राइवेट डिनर के लिए व्हाइट हाउस गए तो उनके लिए कई गिफ्ट्स के अलावा देसी घी का खास तोहफा भी लेकर गए। अमेरिका और भारत के बीच देसी घी का रिश्ता आजादी के बाद से ही जुड़ गया था।
भारत और अमेरिका के बीच घी को लेकर एक रोचक किस्सा 1950 के दशक का है। अमेरिकी किसानों के पास 260 मिलियन पाउंड्स यानी 1 लाख टन से ज्यादा मक्खन जमा हो गया था और वह उसे किसी भी तरह इस्तेमाल में नहीं ला पा रहे थे। इसके खराब होने का खतरा भी था।
अमेरिका में घी खाने का चलन भारत की तरह नहीं रहा है। ऐसे में सरकार को किसी ने सुझाव दिया कि इतने मक्खन को बेकार करने से अच्छा है कि इस मक्खन का घी बना जाए और इस घी को भारतीय उपमहाद्वीप में पहुंचाकर बेच दिया जाए, जहां लोगों की थाली बिना घी के पूरी ही नहीं होती।
अमेरिकी सरकार ने इस बारे में गंभीरता से सोचा और यह जिम्मा डेयरी एक्सपर्ट लुईस एच बर्गवाल्ड को सौंपा। बर्गवाल्ड को भारत भेजा गया, ताकि वह भारतीय व्यापारियों को अमेरिकी घी के स्वाद से परिचित करा सकें।
उन्होंने पता लगाया कि भारत में दक्षिण से पश्चिमी इलाके तक लोग गाय का घी खाना पसंद करते हैं, जबकि उत्तर से पूर्व तक भैंस का घी लोगों को भाता है। बर्गवाल्ड ने अमेरिका जाकर यह रिपोर्ट दी और उसके बाद से भारतीयों के जायके के लिहाज से घी तैयार कर भारत भेजा जाने लगा।
इसके बाद घी अमेरिकी लोगों के लिए अजीब चीज नहीं रही। यह अमेरिका में इतना पॉपुलर हो गया कि 1955 में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक आर्टिकल छपा-'घी इज फॉर गुड'। इसके लेखक ‘मालगुडी डेज’ लिखने वाले आरके नारायण थे। उन्होंने कहा कि घी मक्खन का ही एडवांस रूप है, मगर यह उससे भी कुछ ज्यादा ही है।
ठीक वैसे, जैसे वाइन अंगूर का सिर्फ जूस न होकर बल्कि उससे कहीं ज्यादा है। उनका मानना था कि घी सुस्त माता-पिता की जहीन औलाद की तरह है। उन्होंने घी के आविष्कार को भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी उपलब्धि भी बताया।
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