यौन शोषण के खिलाफ पहलवानों के आरोपों में उलझ गई भाजपा
यौन शोषण के खिलाफ पहलवानों के आरोपों में उलझ गई भाजपा
बृजभूषण शरण सिंह का मामला भाजपा के लिए टेढ़ी खीर जैसा होता जा रहा है| हरियाणा के पहलवानों की लड़ाई उत्तर प्रदेश के जाटों की लड़ाई तो पहले ही बन चुकी थी, अब यह उत्तर प्रदेश और राजस्थान के जाटों की लड़ाई भी बन गई है| हरियाणा की राजनीति में सालों तक जाटों का कब्जा रहा है, जिसे भाजपा ने 2014 में तोड़ना शुरू किया। हालांकि 2014 में भाजपा ने भी 24 जाटों को टिकट दिया था, लेकिन जीते सिर्फ 6 थे। क्योंकि बाकी जातियों के ज्यादा विधायक बन गए थे, इसलिए भाजपा ने जाट को मुख्यमंत्री बनाने की कांग्रेसी रिवायत को बदल कर पहली बार एक पंजाबी को मुख्यमंत्री बना दिया था| इससे हरियाणा की राजनीति से जाटों का प्रभाव खत्म होने की शुरुआत हुई|
भाजपा ने 2019 के चुनावों में सिर्फ 19 जाटों को टिकट दिया| हरियाणा की राजनीति में दूसरी जातियों के बढ़ते प्रभाव के चलते कांग्रेस ने भी जहां 2014 में 28 जाटों को टिकट दिया था, वहीं 2019 में 26 को टिकट दिया| हरियाणा में जाटों की आबादी सर्वाधिक 25 प्रतिशत है। वे 40 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं, लेकिन 2014 से अन्य जातियों के एकजुट हो जाने के बाद पिछले 9 साल से गैर जाट मुख्यमंत्री है| इसका सर्वाधिक प्रभाव कांग्रेस की राजनीति पर और कांग्रेस में भी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के परिवार की राजनीति पर पड़ा है| इसलिए एक धारणा यह बनी है कि जाटों को कांग्रेस के पीछे लामबंद करने के लिए हुड्डा परिवार ने ही पहलवानों का आन्दोलन शुरू करवाया है| धरने पर जाट नेताओं के पहुंचने की शुरुआत भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के सांसद बेटे दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने की थी| इससे पहले जब जनवरी में धरना हुआ था, तब धरने पर किसी राजनीतिज्ञ को नहीं आने दिया गया था| उस समय धरने का कारण पहलवानों के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भेजने के नियम बदला जाना बताया गया था, लेकिन बाद में रेसलिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को पद से हटाए जाने का मुद्दा बन गया, फिर बृजभूषण पर यौन शोषण का आरोप सामने आ गया, उसके बाद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी सबसे बड़ा मुद्दा बन गया| भारतीय कुश्ती संघ ने नियमों में बदलाव यह किया था कि कि कोई भी पहलवान बिना राष्ट्रीय स्तर का मुकाबला जीते अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में नहीं जा सकेगा| लड़ाई की शुरुआत इसी बात पर हुई थी| अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में जा चुके हरियाणा के पहलवानों की दलील थी कि क्योंकि वे अंतरराष्ट्रीय मेडल जीत चुके हैं, इसलिए उन्हें बिना मुकाबले के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में भेजा जाए| यह एक तरह से उनकी मोनोपॉली और पह
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