महाराष्ट्र का इतिहास
महाराष्ट्र के सामाजिक सांस्कृतिक इतिहास को पढ़ते, समझते हुए कई बार रुकना पड़ा। कई बार कुछ महापुरुष खलनायक लगने लगे, लेकिन उस विचार मुद्दे पर अंतिम राय बनाना नही चाही। उनकी विवशता और प्रसंग की पड़ताल करता रहा। किताब जमा करता रहा और कई बार पढ़ना स्थगित किया।
कुछ उलझन और परेशानी के मामले में एक मामला था/है पंडिता रमाबाई की भूमिका। ...वह कौन सी विवशता या समय अभाव या क्या था कि उनके लेखन/पत्र के भीतर एक शब्द भी फुले परिवार पर लिखा नही गया। इस सवाल का जवाब तमाम कोशिशों के बावजूद नही मिला।
अब जबकि बहुत सारा वक्त गुजर गया।फेसबुक पर बहुत कुछ बहुत साल से हो गया। हिंदी की पत्रिकाओं को पढ़ना बंद हो गया। उस धारा के विचारक, चिंतक आलोचक आदि की कलम इस समय के दौर में भी फुले-अम्बेडकरी विचार परंपरा पर नहीं चलती है, तो उस वक्त पंडिता रमाबाई ने अगर नही लिखा, तो क्या हुआ???
-Kailash Wankhed
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