वेब सीरीज( गर्मी)
तिग्मांशु धुलिया की 'गर्मी' (Sony LIV) अस्सी के दशक के आख़िरी और नब्बे के दशक के शुरू के बरसों में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति और उसके इर्द-गिर्द के समीकरणों की कथा है, जिसे स्मार्ट फ़ोन युग में पैबस्त करने की कोशिश हुई है. यह सीरिज़ एक तरह से उनकी ख्यात फ़िल्म 'हासिल' (2003) का रिहैश है. एक सपाट प्रयास है, जो दो तरह की नौस्टैलजिया से प्रेरित है- धुलिया की अपनी स्मृतियाँ और 'हासिल' बनाने की यादें.
नौस्टैलजिया के साथ एक परेशानी यह होती है कि वह मिथ से भरपूर तो होता है, पर सचेत न रहा जाए, तो उसकी तहें गुम जाती हैं और उसकी पेशकश गॉसिप का संग्रह बन जाता है. बहरहाल, आप किसी फ़िल्मकार से उम्मीद करें कि वह हमेशा अच्छी प्रस्तुति ही देगा, तो वह ज़्यादती होगी.
'हासिल' कल्ट हो गयी, तो हो गयी. 'गर्मी' को एक बार झेला जा सकता है. हिन्दी सीरिज़ की वही समस्या है, जो हिन्दी पॉपुलर लेखन की है- किरदार बोले ही चले जाते हैं. डायलॉग इतने ज़्यादा होते हैं कि दिमाग़ भन्ना जाता है. कलाकारों का काम अच्छा है और इससे निश्चित रूप से कुछ बढ़िया नये कलाकार इंडस्ट्री को मिलेंगे. दृश्य भी अच्छे हैं और सीरिज़ को अपने कंधे पर ढोते हैं. ⭐️⭐️
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