SC ने समलैंगिक विवाह को नहीं दी मान्यता

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला किया है। कोर्ट ने कहा कि विवाह मौलिक अधिकार नहीं है। लेकिन सभी समुदायों को एक समान अधिकार मिलने चाहिए।

अक्टूबर 17, 2023 - 22:02
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SC ने समलैंगिक विवाह को नहीं दी मान्यता

सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज यानि समलैंगिक विवाह को लेकर अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि विवाह मौलिक अधिकार नहीं है और यह स्थायी भी है। इसका स्वरूप बदलता रहता है। लेकिन समाज के सभी समुदायों की जाति, लिंग, भाषा या किसी भी तरह अलग होने के आधार सुविधाओं में कटौती नहीं की जा सकती। इसलिए एलजीबीटी कम्यूनिटी को सभी सुविधाएं बिना किसी भेदभाव के दी जानी चाहिए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस मुद्दे पर व्यापक बहस की गई थी। पक्ष-विपक्ष में कई तरह के तर्क भी दिए गए लेकिन अंत में कोर्ट ने यह बहुत बड़ा फैसला सुना दिया है।

सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को समलैंगिक विवाहों के मामले में फैसला सुना सकता है। इससे जुड़ी याचिकाओं पर मैराथन सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई वाली पीठ में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। यह सुनवाई 18 समलैंगिक जोड़ों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर याचिका के बाद की गई थी। समलैंगिक जोड़ों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता और समाज में अपने रिश्ते को मान्यता देने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट से यह भी मांग की गई है कि विशेष विवाह अधिनियम में विवाह में समान लिंग वाले जोड़े भी शामिल किए जाएं।

  • चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि कोर्ट को मामले की सुनवाई करने का अधिकार है।
  • समलैंगिकता नेचुरल है और भारत में सदियों से यह चली आ रही है।
  • यह न तो शहरी है और न ही ग्रामीण है। यह न तो गरीबी से जुड़ी है और न ही अमीरी से जुड़ी है।
  • विवाह कोई स्थायी संस्था नहीं है और इसका स्वरूप लगातार बदलता रहा है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कमेटी बनाकर समलैंगिकों के लिए राशन कार्ड बनाने की सुविधा दी जाए।
  • समलैंगिक जोड़ों को ज्वाइंट बैंक अकाउंट खोलने, पेंशन और ग्रेच्युटी में नॉमिनी की सुविधा मिले।
  • सीजेआई ने कहा कि सभी को लाइफ पार्टनर चुनने का अधिकार है, जीवन का जरूरी हिस्सा है।
  • साथी चुनना और साथ रहना जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आता है।
  • एलजीबीटी सहित सभी को अपना जीवन साथी चुनने का समान अधिकार है।
  • सीजेआई ने कहा कि देश में विवाह का स्वरूप लगातार बदलता रहा है, यह स्थिर नहीं है।
  • सती प्रथा से लेकर बाल विवाह तक में बदलाव हुए हं। शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।

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