कविता
वसीयतनामा ___________
मेरी खाल दे दी जाए
किसी खेत को कविताएँ कर दी जाएँ
प्रवाहित किसी नाले में कौओं को दे दिया जाए निमंत्रण
कि आवें और छज्जे पर बैठकर काँव-काँव करें
मेरा कुर्ता किसी पेड़ को दे दिया जाए
कमीज़ किसी झाड़ी को
मेरी चिट्ठियाँ भेज दी जाएँ
किसी और पते पर
किसी और का नाम लिख दिया जाए मेरे नाम की जगह
मेरा बिस्तर दे दिया जाए
किसी बेबिस्तर पड़ोसी को
जो कहता हूँ सो मैं कहता हूँ
पर जो नहीं कहता वह पत्थरों को दे दिया जाए
कि शायद... शायद... कुछ बोलें।
- केदारनाथ सिंह
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