सत्यजीत रे
1920 का दशक ।
पटना के सर्कुलर गार्डेन के सामने कई खूबसूरत बड़े बड़े बंगलो में एक बंगला का नाम है लिली विला । जो लाल ईंटों से बना एक आलीशान बंगला है। जिसमें हाईकोर्ट के बैरिस्टर चारुचंद्र दास अपने परिवार के साथ रहते हैं। इनकी तीन बेटियां जो गीत, संगीत और नाटक में सक्रिय हैं। शिशिर भादुड़ी का नाटक 'सीता' कलकत्ता में बहुत लोकप्रिय हुआ है ।
उस नाटक का एक गीत सबसे छोटी बेटी मोंकू बहुत अच्छा गाती है। पटना से निकलनेवाला अंग्रेजी अखबार सर्चलाइट के सम्पादक अम्बिका दा इनके साथ लिली विला में ही रहते हैं। मोंकू और उसकी बहनें उनको दादा कहती हैl
कलकत्ता से इनके परिवार के बाकी लोग अक्सर पटना आते रहते हैं। देशबंधु चितरंजन दास मोंकू के सगे मौसा हैं। मोंकू की बुआ का लड़का माणिक जो उससे साढ़े तीन साल छोटा है। वह भी अपने मामा के यहाँ छुट्टियों में पटना आता है। पटना के बी एन कॉलेज में बंगाली अध्यापकों की वजह से अक्सर ढेर सारे संगीत कार्यक्रम और नाटक होते रहते हैं । परिवार के साथ मोंकू और माणिक कार्यक्रम देखने हमेशा बी एन कॉलेज जाया करते हैं।
दोनों अपने लिली विला बंगले में लगे अमरूद के पेड़ से अमरूद तोड़ते और मोंकू रविन्द्र संगीत गाया करती। माणिक को वेस्टर्न म्यूजिक में ज़्यादा दिलचस्पी है। वह मोंकू को पश्चिमी गीत सुनने को कहता है। दोनों को साहित्य, म्यूजिक और कला में एक जैसी अभिरुचि है।
तभी मोंकू के पिता का निधन हो जाता है। मोंकू अपना महबूब शहर पटना छोड़ना नहीं चाहती। 1932 में मजबूरीवश मोंकू को अपनी माँ और बहनों के साथ पटना छोड़कर कलकत्ता आना पड़ता है। मोंकू अपनी माँ के साथ अपने सगे चाचा के घर में रहना शुरू करती है।
उसी घर में माणिक भी अपनी माँ के साथ अपने मामा के घर में रह रहा है। माणिक को बचपन से विदेशी फिल्में देखने का शौक है। माणिक को मुँह से विसिल बजाने की गजब प्रतिभा है। एकबार कोई धुन सुन ले उसके बाद उस धुन को हू ब हू मुंह से बजा सकता है। मोंकू का स्वर और माणिक के विसिल के लोग दीवाने हैं। मोंकू को माणिक का साथ बहुत अच्छा लगता है। मोंकू की दो बार शादी तय होती है लेकिन वह उन लड़कों को खारिज कर देती है। वह अपनी हर बात माणिक के साथ शेयर करती है।
एकदिन मोंकू अपने प्यार का इज़हार करते हुए कहती है कि मुझे तुम्हारे जैसा लड़का चाहिए माणिक। माणिक भी कहता है कि मुझे भी तुम्हारी जैसी लड़की चाहिए । लेकिन रिश्ते में भाई बहन होने से उनकी शादी हो नहीं सकती। वे फ़ैसला करते हैं कि हम दोनों शादी नहीं करेंगे और एक दोस्त की तरह रहेंगे।
लेकिन कुछ दोस्तों की मदद से अक्टूबर 1948 में चुपके से दोनों शादी कर लेते हैं। माणिक और मोंकू बनी बनाई परम्परा को तोड़कर एक आदर्श और प्यार करनेवाले दम्पति बनते हैं। एक साल बाद परिवार इनके रिश्ते को मंजूरी दे देता है। कुछ सालों बाद माणिक भारतीय सिनेमा के एक महान फिल्मकार के रूप में अपनी पहचान बनाते हैं। जिसे दुनिया सत्यजीत रे के नाम से जानती है। मोंकू जो उनकी जीवनसाथी, दोस्त, गाइड रही उन्हें लोग बिजोया रे के नाम से जानते हैं।
30 मार्च 1992 को सत्यजीत रे को ऑस्कर अवॉर्ड से नवाजा गया था
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